tag:blogger.com,1999:blog-8039176599706091520.post9034791845391347489..comments2023-07-04T06:45:09.011-07:00Comments on मज़हब ए कुफ़्र : मुझे माफ़ कर देना....Unknownnoreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-8039176599706091520.post-18489873428700597322012-02-13T12:54:14.170-08:002012-02-13T12:54:14.170-08:00मिल के कविता.. वाह.. सामुदायिक कविता का ख़याल तो न...मिल के कविता.. वाह.. सामुदायिक कविता का ख़याल तो नेक है.. कोशिश कर ही सकते हैं..Samarhttps://www.blogger.com/profile/02202610726259736704noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8039176599706091520.post-16347489544375573232012-02-13T12:52:08.027-08:002012-02-13T12:52:08.027-08:00इस दिशा में एक नई रचना लिखी जा सकती है...क्यों समर...इस दिशा में एक नई रचना लिखी जा सकती है...क्यों समर भाई, मिल के लिखा जाए कुछ...मयंकhttps://www.blogger.com/profile/10753520280499089073noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8039176599706091520.post-34915306784206876752012-02-13T12:51:08.453-08:002012-02-13T12:51:08.453-08:00खूबसूरत कविता है, जिन्दा संभावनाओं से भरी हुई, पर ...खूबसूरत कविता है, जिन्दा संभावनाओं से भरी हुई, पर शायद और कसी जा सकती है..<br />या फिर बढ़ाई.. <br />जैसे इस दिशा में "कि प्रेम करना/इन समयों में/छलने सा लगता है/अपने लोगों को/पर फिर भी/याद रखना/कि मारे जाने के समय भी/मेरे खयालों में कुछ इन्कलाब था/और कुछ तुम्हारा इश्क/और दोनों ही/अभिशापित/ अपनी जिंदगी में पूरा न होने के लिए//समरhttp://www.mofussilmusings.comnoreply@blogger.com