नीली साड़ी...सपना...और तुम
जब ढलने लगे रात
पौ फटने से पहले
आ जाया करो
तुम
मेरे सपनों में
पहन वही नीली साड़ी
जिसके किनारे लटकता था
एक रेशमी धागा
और उससे जड़ा
एक नीला नग
और हां
उस दिन की ही मानिंद
खोल कर आना
अपने काले बाल
उनकी खुशबू बिखरती है
खुले होने पर
आ जाना
मेरे सपनों में
मेरे सोने पर
वो नीला रंग
जैसे हो
सुरमई नदी कोई
नीले पानी से भरी
जैसे कोई फूल
उस अंग्रेज़ी नाम वाले
देसी जंगली पौधे का
हां वही
कॉर्नफ्लावर
जैसे हो आसमान
उस खुली
बिन बादल
दोपहर का
नीला...सपाट...अनंत
और उसी वक्त
तुम मेरी आंखों में
आंचल अपना
लहरा जाना
मेरे सपनों में
आ जाना
छूकर अपनी आंखों से
मेरी आंखों को
दे दो
मुझे
रोशनी
बिखेर दो काजल
थोड़ा सा
मेरी भी पलकों के
कोरों पर
थोड़ा सा संगीत
बहा दो
अपनी सांसों का
मेरी धड़कन के
शोरों पर
आज ही
आ जाओ
आओ कि
मेरे सपने
बेकाबू हैं
बेसब्र हैं
बेताब हैं
कि आओ तुम इनमें
और
फिर कभी
नींद ही न आए...
मयंक सक्सेना
21-02-2012 (1.10 रात)
Bahut komal sundar!
जवाब देंहटाएंमयंक साहब, बहुत ही बढ़िया कविता...बहुत ही सुंदर...
जवाब देंहटाएं