नीरज जी की सालगिरह पर ......
हरिवंश राय बच्चन की यशस्वी परम्परा के अकेले जीवित कवि गोपाल दास नीरज का आज जन्मदिन है....आज उनको बधाइयां देते हुए हम उनके स्वास्थ्य और सुख की कामना करते हैं। इस अवसर पर पेश हैं उनकी कुछ बेजोड़ कविताओं, गीतों और दोहों के अंश.....बोले तो मेडले !
दोहे
मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयार
बड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार
कवियों की और चोर की गति है एक समान
दिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान
दूरभाष का देश में जब से हुआ प्रचार
तब से घर आते नहीं चिट्ठी पत्री तार
गागर में सागर भरे मुँदरी में नवरत्न
अगर न ये दोहा करे, है सब व्यर्थ प्रयत्न
गीत
कारवाँ गुज़र गया
स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई
पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई
चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई
गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए
साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गये
और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई
पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई
चाह तो निकल सकी न पर उमर निकल गई
गीत अश्क बन गए छंद हो दफन गए
साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गये
और हम झुके-झुके मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ
मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ तुम शहज़ादी रूप नगर की
हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा ?
मीलों जहाँ न पता खुशी का
मैं उस आँगन का इकलौता,
तुम उस घर की कली जहाँ नित
होंठ करें गीतों का न्योता,
मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी
मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
मेरा कुर्ता सिला दुखों ने
बदनामी ने काज निकाले
तुम जो आँचल ओढ़े उसमें
नभ ने सब तारे जड़ डाले
मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा
मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का...
कविता
दीप और मनुष्य
एक दिन मैंने कहा यूँ दीप से
‘‘तू धरा पर सूर्य का अवतार है,
किसलिए फिर स्नेह बिन मेरे बता
तू न कुछ, बस धूल-कण निस्सार है ?’’
लौ रही चुप, दीप ही बोला मगर
‘‘बात करना तक तुझे आता नहीं,
सत्य है सिर पर चढ़ा जब दर्प हो
आँख का परदा उधर पाता नहीं।
मूढ़ ! खिलता फूल यदि निज गंध से
मालियों का नाम फिर चलता कहाँ ?
मैं स्वयं ही आग से जलता अगर
ज्योति का गौरव तुझे मिलता कहाँ ?’’
ये उस महान कवि की कृतियाँ हैं जिसे एक वक़्त के मठाधीशों ने मंचीय गीतकार कह कर नकार दिया था.....
neeraj ji ki anmol kavitaon ko padhwane ke liye hardik dhanyawaad.
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी कवितायें आपने पढ़वाई उसके लिए शुक्रिया ...अच्छा लेख है ....
जवाब देंहटाएंअनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
नीरज जी के जन्मदिन पर उनकी कविता पढने का मौका देने के लिए धय्न्वाद .
जवाब देंहटाएंनीरज जी की एक कविता की सिर्फ़ दो पंक्तिया मुझे याद है . वो लिख रहा हु ..
आदमी को आदमी बनाने के लिए ,
स्याही नही , आँखोंवाला पानी चाहिए .
आप से अनुरोध है, यदि सम्भव हो तो , यह कविता पुरी लिख कर पोस्ट करे .
लतिकेश
मुंबई
लतिकेश जी आपकी आज्ञा सर आंखों पर
जवाब देंहटाएंनीरज ओ शुरू से ही मेरे पंसदीदा कवि हैं
जवाब देंहटाएं---
गुलाबी कोंपलें
सुंदर रचना संसार..........
जवाब देंहटाएंआपका धन्यवाद ऐसी सुंदर रचनाओं के लिए.....
और नीरज जी के स्वस्थ की शुभकामनाएं
लतिकेश जी....वह रचना मैंने www.cavssanchar.blogspot.com पर डाल दी है आपकी फ़रमाइश पर
जवाब देंहटाएंअच्छी कवितायें,शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअच्छी कविताएं पढायी....धन्यवाद।
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