ब्लॉगर बैठक पर शंका निवारण...जवाब...एजेंडा....और अनुरोध...
(सबसे पहले अपने एक बेहद लाडले साथी को स्पष्ट कर दूं कि ये पोस्ट किसी सफाई के तौर पर नहीं लिख रहा हूं, इसका कल ही वादा किया था....वो निभा रहा हूं....)
हां तो कल हम पहुंचे थे स्वल्पाहार के डिब्बों तक....तो आगे चलते हैं....मेरे बगल में एक तरफ थे इरफ़ान भाई और एक ओर थे खुशदीप जी....ऐसा इसलिए था कि मैं पहले ही बस और रेल के अंदाज़ में उन दोनो के बीच की कुर्सी पर अपना पिट्ठू बैग रख कर सीट घेर चुका था.....वैसे भी खुशदीप जी और इरफान भाई तो नोएडा से साथ ही आए थे....कहीं आपस ही में न बतियाते रहें तो बीच में हड्डी ज़रूरी थी....हां तो इरफान भाई, खुशदीप जी के साथ आते आते ही शीतल पेय गटक चुके थे पर स्वल्पाहार का डिब्बा जब खुला तो उनका मुंह खुला रह गया...बोले "अरे मयंक जी इतना सारा कैसे खाया जाएगा, मैं तो घर से भी खाना खा के निकला हूं, इसमें से आप भी ले लीजिए कुछ...." इस कथन के साथ ही भाई ने अपने डिब्बे से समोसा निकाल कर हमारे डिब्बे में बिठा दिया.....हम तो घर से सुबह चले थे....और कुंवारे हैं तो बिना खाए ही चले थे....सो एक बार भी मना नहीं किया....ज़ाहिर है पापी पेट का सवाल था....इसके बाद शुरु हुआ तस्वीरें लेने का दौर और हमेशा की तरह कैमरे तब ज़्यादा चमके जब खाना खाया जा रहा था....तस्वीरें आपने देखी ही हैं....पर इसके बाद शुरु हुआ असली दौर....
अगले दौर को असली दौर क्यों कह रहा हूं ये जानना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि अब तक इस पूरे सत्र का चूंकि हम में से किसी भी ब्लॉगर ने ठीक ढंग से उल्लेख नहीं किया इस वजह से फिर से इस मिलन की नीयत पर उंगलियां उठ रही हैं....ज़ाहिर है हमने वहां काम की बातें की पर ब्लॉग पर ज़लज़ला और खाने की बातें ज़्यादा....शायद वक्त की कमी की वजह से.....तो भाई लोगों सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि अगला सत्र था ब्लॉगरों...यानी कि हिंदी चिट्ठाकारों के संगठन और उसके उद्देश्यों पर चर्चा का.....
हालांकि अविनाश जी के आदेश और सलाह पर संगठन के निर्माण हेतु एजेंडा मैं बनाकर लाया था पर चौखट वाले चाचा पवन चंदन जी का सुझाव था कि पहले सब अपनी अपनी सलाह रखें...परेशानियां बताएं....बात कहें....और फिर एजेंडे को पेश किया जाए....जहां जहां ज़रूरत होगी एजेंडे में संशोधन भी हो जाएगा.....सलाह बढ़िया लगी और फिर एक एक कर के सब ने अपना मत रखा....सामाजिक सेवाओं से लेकर लड़ाई तक की बात कही गई....बेनामियों और लापताओं को भाव न देने की बात हुई.....बीच बीच में हंसी मज़ाक भी होता रहा....व्यक्तिगत टीका टिप्पणी से परहेज़ की बात कही गई....हिंदी में नए ब्लॉगरों को जोड़ने की बात हुई....और इसके अलावा ये भी सवाल उठ ही गया कि वाकई एजेंडा क्या है....
इसके बाद आई बारी हमारी....एजेंडा तो तैयार ही था....भाई लोगों....(माताओं-बहनों नें भी) उसमें संशोधन और संकलन भी करवा दिए थे....तो हमने अपनी बात रखी....ये सारे ब्लॉगर्स की बात के बाद प्रस्तावित किया गया एजेंडा है....और सम्भवतः सबकी शिकायतों का निराकरण कर देगा कि ऐसी बैठकें केवल खाने और खानापूर्ति के लिए होती हैं.....तो लीजिए बिंदुवार एजेंडा.....
- हिंदी ब्लॉगरों का एक संगठन बने जिसमें किसी भी धर्म, जाति, लिंग, सम्प्रदाय, नागरिकता और विचारधारा का ब्लॉगर सदस्य बन सकता हो।
- इस संगठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य और आवश्यक्ता यह है कि सरकार द्वारा किसी भी सम्भावित सेंसरशिप, तानाशाही और ब्लॉगरों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ़ एकजुट हुआ जा सके जो भविष्य में अवश्यम्भावी है।
- यह संगठन हिंदी चिट्ठाकारी में साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देगा और किसी भी प्रकार की साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने वाली चिट्ठाकारी के खिलाफ़ लड़ेगा।
- ब्लॉगरों का संगठन वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देगा और निरंतर समाज से अंधविश्वास दूर करने का काम करेगा।
- हिंदी चिट्ठों द्वारा कम्प्यूटर और इंटरनेट के प्रयोग के लिए हिंदी देशज भाषा और वर्तनी विकास की दिशा में काम किया जाएगा।
- अलग अलग भाषाओं का साहित्य ब्लॉगर आम आदमी की भाषा में अनूदित कर के उसे लोकप्रिय करेंगे ही और साथ ही भाषा को भी।
- अभी तक हिंदी साहित्य में उपेक्षित विषयों जैसे बाल साहित्य, वैज्ञानिक साहित्य आदि पर काम किया जाए।
- अधिक से अधिक संख्या में हिंदी के नए ब्लॉगरों को जोड़ा जाए।
- विषयों की विविधता सुनिश्चित की जाए, अधिक से अधिक और लोकोपयोगी विषयों पर ब्लॉगिंग हो।
- नियमित ब्लॉगरों की क्षेत्रवार और राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय बैठकें हों और छात्रों और ब्लॉगरों के लिए उपयोगी वर्कशॉप्स का आयोजन हो।
- स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में हिंदी चिट्ठाकारी का प्रचार प्रसार हो।
- हिंदी से जुड़ी लोक बोलियो और लोक भाषाओं को प्रोत्साहन दिया जाए, हर ब्लॉगर अपनी लोक बोली या भाषा में भी नियमित लेखन करे।
- नए ब्लॉगर्स की सहायता की जाए।
- ब्लॉगर्स की सामाजिक, व्यक्तिगत और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
- हिंदी चिट्ठाकारी में लगातार बढ़ रही व्यक्तिगत टीका टिप्पणी और तथाकथित कुंठित ब्लॉगिंग पर लगाम कसी जा सके।
- हिंदी चिट्ठाकारी को अपनी भाषा हिंदी के लिए आंदोलन के मंच के तौर पर इस्तेमाल किया जाए।
- ब्लॉगिंग को एक सामाजिक और राजनैतिक आंदोलन के तौर पर स्थापित किया जाए, इसे लोकतंत्र का पांचवा खंभा बनाया जाए।
- संगठन के सदस्यों की सहायता से अपने सामाजिक दायित्वों का भी लगातार निर्वहन हो।
- संगठन एक त्रैमासिक (प्रारंभ में) प्रिंट पत्रिका निकाले जिसमें गत तीन माह की चुनिंदा ब्लॉग रचनाएं संकलित हों। (रचनाओं के रचनाकार का संगठन का सदस्य होना ज़रूरी नहीं है)
- संगठन का एक सामूहिक ब्लॉग बनाया जाए जहां न केवल फोरम्स हो बल्कि संगठन की सूचनाओं से लेकर फंड तक का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
हम मानते हैं कि संगठन न केवल ब्लॉगिंग को दिशा देगा बल्कि इसकी दशा भी सुधारेगा। ये संगठन है कोई गुट नहीं है....हम एक ऐसा अनोखा संगठन चाहते हैं जहां विचारधाराओं की कोई बंदिश नहीं है....सबके पास लोकतंत्र है...क्योंकि ब्लॉग लोकतंत्र का ही प्रतीक है....एक ऐसा संगठन जहां अलग अलग विचारधाराओं के वे सभी लोग एक दूसरे का हाथ थामें खड़े हों जो अंततः देश और दुनिया का भला चाहते हैं....मतभेद जहां मनभेद न बने....जहां वाकई हम एक आदर्श दुनिया का सपना देख सकें...जी सकें....जहां लिंग...भाषा....जाति...सम्प्रदाय.....विचारधारा का भेद मिट चुका हो....और वसुधैव कुटुम्कम की परिकल्पना साकार हो.....
जैसा कि कृष्ण कहते हैं गीता में 'सर्वभूतेषु हिते रतः' और करआन शरीफ़ कहती है, 'खुदा सारी खिलकत को बरकत दे....' हम कहते हैं तथास्तु...आमीन.....
संघे शक्तिः
आप में से जो भी लोग इस बारे में और सुझाव देना चाहते हैं वो टिप्पणी के तौर पर दर्ज कर सकते हैं....विरोध भी और सहमति भी.....जो साथ आना चाहते हैं वो....और जो नहीं आना चाहते वो भी अपने कारण ज़रूर दें...अपनी राय ज़रूर दे....आप ई मेल भी कर सकते हैं....
mailmayanksaxena@gmail.com
ये कुछ लोगों को मेरा जवाब भी था....और सवाल भी.....कि आखिर क्या गलत था इसमें....और क्या वाकई ये बैठक दिशाहीन थी.....
आज मामला सीरियस हो गया कल इस बैठक की कुछ मज़ाकिया बातें.....और हां साथियों गलती हमारी है कि हमने बैठक के असल मुद्दों से ज़्यादा गौण मुद्दों पर पोस्ट लिखी.....हमारा ध्यान भले ही बैठक पर था पर अगर पोस्ट में असल मु्द्दों के ज़िक्र पर खाने का वर्णन और आपस की गुफ्तगू हावी हो गई...तो संदेश तो गलत जाना ही था न.....खैर गलती मेरी भी है...मैंने भी पोस्ट देर में डाली....और खाने का ज़िक्र मैंने भी किया.....सबसे क्षमा प्रार्थना के साथ अनुरोध कि हम से कभी भी ये संदेश न जाए कि ब्लॉगरों को बैठक के उद्देश्य से ज़्यादा पोस्टों पर टिप्पणियों की चिंता है.....यकीन मानें मेरी सर्वश्रेष्ठ रचना पर आजतक कोई टिप्पणी नहीं है....पॉपुलिस्ट पोस्टों का मोह कभी कभार छोड़ना चाहिए......
बाकी एजेंडा सबके सामने है और बैठक की दिशा और नतीजे भी.....
फिर मिलेंगे....
रुपरेखा पढ़ी और विचार जाने. थोड़ा चिन्तन कर लें, फिर बात करते हैं.
जवाब देंहटाएं@ उड़न तश्तरी
जवाब देंहटाएंचिंतन के साथ हल्का करें तन भी, चिन भी
चुन मुन भी आएं, हिंदी ब्लॉग अपना बनाएं
घूमें भी, चलें भी, टहलें भी, बहलें भी
लैपटाप है न, लें हाथों में टॉपोटॉप
हिन्दी ब्लॉगिंग दूर करेगी अंधेरा जो है घटाटोप।
मयंक जी अच्चा लगा आपका अनुभव और विचार जानकर / आपने बेहतरीन मुद्दे उठाये हैं , इस पर अमल की भी पूरी तैयारी की जा रही है /
जवाब देंहटाएंसंगठन की रुपरेखा और एजेंडे से १०० % सहमत :)
जवाब देंहटाएंमयंक जी
जवाब देंहटाएंआपसे मिलकर अच्छा लगा।
आपने जो रुपरेखा रखी है
उस पर अब आराम से चितंन कर प्रतिक्रिया देंगें।
राम राम
मुद्दों पर आधारित बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंअच्छा तो लखनऊ से ही पोस्ट फिट हो रही है क्या?
जवाब देंहटाएं@ ललित जी और समीर जी,
जवाब देंहटाएंचिंतन को जल्दी ही पूर्ण करे...वरना ये चिंता बन जाएगा....ललित जी आपसे मिलकर बी बहुत अच्छा लगा....आपकी मूंछे तो वाकई असली निकलीं....
@ राजीव जी और रतन जी,
सहमति ही नहीं जल्द काम भी ज़रूरी...
@ नीरज भाई,
लखनऊ तो आज रात को निकल रहा हूं....पर पोस्टिंग वहां से बी जारी रहेगी...और लौट कर हस्तिनापुर में महाभारत किया जाएगा...
संगठन बननी चाहिए, समयानुसार इसके जो भी गुण दोष होंगें उसे सुधारते चलें. छत्तीसगढ़ में संगठन बनाने की बात जब आई थी तब अधिकतम नें एक नेक सलाह दिया था कि इसमें पारंपरिक संगठनों जैसा अध्यक्ष आदि का पद ना रखा जाए.
जवाब देंहटाएंरही बात गुटों की तो हिन्दी साहित्य के संगठनों में भी दो अलग अलग विचारधारा और गुट जैसा कुछ तो आज भी विद्यमान हैं इसके बावजूद हिन्दी साहित्य में सृजन निरंतर हो रहा है और साहित्य से जुडे संगठन अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं. मैं पुन: स्थानीय उदाहरण दूंगा, अभी पिछले माह छत्तीसगढ़ के एक छोटे से परगने में कहानी लेखन कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें कहानी लेखन के हर पहलुओं पर चर्चा की गई और विमर्श भी हुआ, भाई शरद कोकाश जी इसके मुख्य आयोजक थे. इसके पूर्व भी इस तरह के संगठनों के प्रयास से कविता कार्यशालाओं में हमारे हिन्दी ब्लॉगजगत के कुछ ब्लॉगर्स भी सम्मिलित हो चुके हैं और आज कविता के क्षेत्र में स्थापित हैं.
इस तरह से सृजनात्मक कार्य संगठनों के सहारे ही सरल रूप से संभव हो पाती हैं. अन्य मुद्दों पर भी चर्चा कर लेवें. आपके बीसों एजेंडे हमें स्वीकार्य हैं स्थानीय तौर पर हम इन्हें अपने संभावित संगठन के एजेंडे में शामिल करेंगें.
हा...हा...हा....हा....हू....हू.....हू.....हू.....हे.....हे.....हे.....हो....हो.....हो....गनीमत है कि किसी ने हमें वहां देखा नहीं....हम भी वहीँ रोशनदान में बैठे सबको टुकुर-टुकुर निहार रहे थे....अगर गलती से भी वहां सबके बीच टपक पड़ते तो सारे कार्यक्रम की वाट ही लग जाती....खैर मुबारक हो सबको यह सम्मलेन.....!!!
जवाब देंहटाएंग़ज़ब कर डाला! बेबाक...
जवाब देंहटाएंमयंक भाई ,
जवाब देंहटाएंआपने विस्तार से सारी बातें सबके सामने रख दी बढिया किया । अभी इस पर बहुत ही मंथन किया जाना बांकी है । अभी सब कुछ अपरिपक्व अवस्था में ही है ऐसा लग रहा है और बहुत से मुद्दों पर सोचना है । चलिए देखते हैं कि आगे क्या होगा है ।
आपका एजेंडा बढ़िया है, विशेषत: सरकार द्वारा ब्लाग्स पर संभावित प्रतिबन्ध के सम्बन्ध में..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत ही सोच समझ कर बनाया गया ऎज़ेण्डा !
बेहतर...
जवाब देंहटाएंयह भी चल रहा है...पता चला...आभार...
असहमति का आदर ही हमें लंबे समय तक बचाए रख सकता है...
आपने अभिभूत किया...
इस गैंग को हार्दिक शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएं:-)