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मज़हब ए कुफ़्र
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मई 22, 2010
3 बजे याद है न....
अविनाश जी के साथ मैं खड़ा हूं आपके इंतज़ार में....
तो मिलते हैं सही वक्त पर...
सही जगह...
सही इरादों को....
सही अंजाम पर पहुंचाने....
जाट धर्मशाला
नांगलोई....
बस कुछ ही घंटों बाद....
टिप्पणियाँ
honesty project democracy
23 मई 2010 को 12:16 am बजे
भाई मैं तो पहुंच चुका हूँ ,आप सब कहाँ हैं ?
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नीरज मुसाफ़िर
25 मई 2010 को 9:18 am बजे
मयंक जी,
आगे का विवरण भी तो लिखो।
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भाई मैं तो पहुंच चुका हूँ ,आप सब कहाँ हैं ?
जवाब देंहटाएंमयंक जी,
जवाब देंहटाएंआगे का विवरण भी तो लिखो।