तीन लघु कविताएं....
ये वो तीन छोटी कविताएं हैं जो अचानक अनायास दिमाग में कभी आई और फेसबुक पर पोस्ट कर दी गई....अब ब्लॉग पर भी डाल रहा हूं....वैसे कई लोग टोकते भी रहते हैं कि थोड़ी छोटी कविताएं लिखा करो....तो ये है छोटी कविताओं की श्रृंखला में शुरुआती तीन कविताएं......
1.न दैन्यं न पलायनं
मेरे मन में
विचार हैं
तुम्हारे पास
बाहुबल
मेरी ज़ुबां पर
शब्द हैं
है तुम्हारे हाथ
संगीनें
तुम फिर भी
लड़ाई से
डर रहे हो
लड़ो मुझसे
पलायन क्यों कर रहे हो.....
2. भरोसा
रात
गहरी हो रही है....
गहरा रहा है...
भरोसा
आएगा कुछ देर में...
सवेरा...
हर रोज़ जैसा........
3. कमीना!
सच कह देता हूं...
कभी भी
सामने हो भले...
कोई भी
निडरता से...
पर उन्हें लगता है
निर्लज्जता सा...
सरलता से...
पर उन्हें
समझ आता है
कुटिल सा...
हां
कड़वा ही होता है..
और
कड़वा ही लगता है...
सच
वो सुन नहीं सकते...
पर मैं
बोलता हूं
कर चौड़ा सीना...
वो कहते हैं...
मैं हूं कमीना!
मयंक सक्सेना
1.न दैन्यं न पलायनं
मेरे मन में
विचार हैं
तुम्हारे पास
बाहुबल
मेरी ज़ुबां पर
शब्द हैं
है तुम्हारे हाथ
संगीनें
तुम फिर भी
लड़ाई से
डर रहे हो
लड़ो मुझसे
पलायन क्यों कर रहे हो.....
2. भरोसा
रात
गहरी हो रही है....
गहरा रहा है...
भरोसा
आएगा कुछ देर में...
सवेरा...
हर रोज़ जैसा........
3. कमीना!
सच कह देता हूं...
कभी भी
सामने हो भले...
कोई भी
निडरता से...
पर उन्हें लगता है
निर्लज्जता सा...
सरलता से...
पर उन्हें
समझ आता है
कुटिल सा...
हां
कड़वा ही होता है..
और
कड़वा ही लगता है...
सच
वो सुन नहीं सकते...
पर मैं
बोलता हूं
कर चौड़ा सीना...
वो कहते हैं...
मैं हूं कमीना!
मयंक सक्सेना
Sundar,sundar aur sundar!
जवाब देंहटाएंteeno hi kavitaayein bahut khoob...
जवाब देंहटाएंसवेरे को तो आना ही है
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविताएँ
दूसरी कविता में भरोसे को किसी के भरोसे न छोड़ अपनी सुबह से जोड़ कर बिल्कुल साधारण शब्दों में एक नया सौंदर्य विकसित करने में सफलता मिली है।
जवाब देंहटाएंपहली कविता की अंतिम पंक्ति का पहला शब्द यूं तो पलायन है पर इसका लायन शब्दों से भी खौफ खाता है - यही तो इस कविता की सफलता है।
तीसरी कविता - सच बोलने वाले का विरोध सदा उपर से जमाने में प्रदर्शित करने के लिए होता आया है क्योंकि प्रत्येक झूठा परिचित होता है अपने बोले गए झूठ से।
Satya bolo Priya bolo
जवाब देंहटाएंApriya Satya aur Priya Asatya mat bolo
Ye sanatan dharam hai
सत्यं ब्रूयात् प्रियम् ब्रूयात....
जवाब देंहटाएंहाहाहा
अमित तुम्हें याद था ये सुभाषित अभी भी....
हाहाहा
ये सब नकली सनातनी परम्परा की देन हैं जो अपने सच खुलने से हमेशा डरती रही....
teeno shaandaar !!! bahut umdaa, bahut shandaar, bahut badhiya... jahanpanaah tussi great ho....
जवाब देंहटाएंछोटी है पर मुकम्मल है !!!!!! कवि !!! बेहतरीन !!!!!!!!
जवाब देंहटाएंsahi hai kamine.............
जवाब देंहटाएं