आखिरी स्मारक
एक युग का अंत हो गया...९७ साल का युग....गंगूबाई हंगल ने दो सदियां...उनके बीच की अंतर...वक्त का ठहराव और समय की रफ्तार सब कुछ देखा था....एक आखिरी स्मारक बन गया हिंदुस्तानी शास्त्रीय शैली के गायन के गर्वीले इतिहास का...किराना घराने की एक और पहचान गंगूबाई हंगल नहीं रहीं....
१९१३ में धारवाड़ में गंगूबाई का जन्म हुआ था....अपने गुरू सवाई गंधर्व से हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन सीखने के लिए गंगूबाई, कुंडगोल जाया करती थी और वहां के लोग उस वक्त की प्रचलित परिपाटी के अनुसार उनका मज़ाक उड़ते हुए उनको गानेवाली कहते थे... और फिर धीरे धीरे यही उनका प्यार का उपनाम होता चला गया....
गंगूबाई कर्नाटक के एक दूरस्थ इलाके हंगल में रहती थी...और इससे उनको अपनी पहचान मिली और नाम के साथ जुड़ा गांव का नाम...हंगल...गंगूबाई हंगल की मां कर्नाटक शैली की शास्त्रीय गायिका थी पर जब बेटी ने हिंदुस्तानी शैली का गायन सीखने का फैसला किया तो मां ने बेटी के लिए खुद अपनी शैली को तिलांजलि दे दी...गंगूबाई की मां का नाम था अम्बाबाई.....गंगूबाई का जन्म एक मल्लाह परिवार में हुआ, जिसे उस वक्त सीधे सीधे सामाजिक संबोधनों में शूद्र कहा जाता था...पर उनके पिता और पति दोनो ब्राह्मण थे...लेकिन उससे भी बड़े आश्चर्य और साहस की बात कि उस दौर में भी न तो उनकी मां...और न उन्होंने ही अपने नाम के आगे अपने पति का उपनाम कभी प्रयोग किया...
अपने गुरु भाई भीमसेन जोशी को भीम अन्ना के नाम से सम्बोधित करने वाली गंगूबाई हंगल ने वो वक्त देखा है जब 9 दिन तक चलने वाले सालाना अखिल भारतीय संगीत समारोह में देश के सारे संगीत दिग्गज एक साथ जुटते थे...वो वक्त भी देखा जब फिल्म के बड़े सितारे शास्त्रीय गायकों का ऑटोग्राफ मांगा करते थे...और जनता की भीड़ शास्त्रीय संगीत सुनने के लिए जुटा करती थी...
गंगूबाई के पति जो आजीवन बेरोज़गार रहे.उनके लिए भी गंगूबाई का प्रेम मिसाल है...उनके पति ने उनकी कमाई हुई एक एक पाई गंवा दी पर उसके बाद भी गंगूबाई ने कभी शिकायत नहीं की..बल्कि उनको अपने आप से शिकायत रही कि पति के अंतिम वक्त में वो उनके साथ न थी....सिद्धेश्वरी देवी जब लकवे का शिकार होकर बिस्तर पर पड़ी थी..तब उनसे मिलने गई गंगूबाई से उन्होंने भैरवी सुनाने का आग्रह किया और आंखों से बहते आंसुओं के साथ उनको सुनती रहीं....
पद्म भूषण गंगूबाई हंगल आज नहीं रहीं...उनके निधन पर शोक व्यक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि वे एक महान जीवन जी कर गई थी...पर शास्त्रीय संगीत के विदा होते दिग्गजों की जयध्वनि के बीच शोक शास्त्रीय संगीत के निधन का है क्योंकि हमारी पीढ़ी में इसे लेकर ज़रा भी चेतना नहीं दिखती...गंगूबाई जन्म से भले ही किसी भी तथाकथित जाति से हों पर शास्त्रों की परिभाषा में वो पांडित्य के उच्चतम सोपानों पर थीं...जैसा कि मनुस्मृति कहती है
जन्मना जायते शूद्रः, संस्कारात् द्विज उच्च्यते
गंगूबाई को श्रद्धांजलि.....
मयम्क जी क्या ये नया बलाग है या मैने पहली बार देखा है? बधाई बहुत बदिया जानकारी शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंगंगूबाई को श्रद्धांजलि!!
जवाब देंहटाएंसुरूचिपूर्ण जानकारी.
जवाब देंहटाएंसंगीत ने एक चमकता सितारा खो दिया.
सुरूचिपूर्ण जानकारी.
जवाब देंहटाएंसंगीत ने एक चमकता सितारा खो दिया.
aapne mere blog ka avlokan kiya. dhanyavad
जवाब देंहटाएंsainha sahab, aap varisht hain. margdarshan dete rahen.
aapne ek kalakar ki baaten apne blog mein ukeri hai. isse dusre logon ko unke baare mein bariki se jankari milegi. us mahan aatma ko pranam.
aapka
raj kumar sahu
janjgir