प्रेमचंद और रफी




साथियो आपको इससे पहले भी अपने करीबी साथी हिमांशु की कवितायें पढा चुका हूँ ...... इस बार कुछ गद्य पढ़े उन्ही का लिखा हुआ क्यूंकि वे वाकई अच्छा लिखते हैं !


आज ३१ जुलाई है। एक खास दिन । १८८० में आज ही के दिन कथा सम्राट प्रेमचंद का जन्म हुआ था तो ठीक १०० साल बाद १९८० में स्वर सम्राट मोहम्मद रफी साहब इस दुनिया से रुखसत हुए थे। मैं दोनों का बहुत बड़ा मुरीद हूँ इसलिए दोनों को श्रृद्धांजलि दे रहा हूँ। प्रेमचंद - प्रेमचंद को केवल कथा सम्राट कह देने से उनका परिचय नही दिया जा सकता । प्रेमचंद को जानना है तो उन्हें पढ़ना तो पड़ेगा ही । लेकिन चूंकि आजकल चेतन भगत को पढने से आपको फुर्सत नही होगी और फ़िर आप में से ही कोई अपने चेतन का अचेतन पाठक , अपने आपको साहित्य पढने का शौकीन बताते हुए प्रेमचंद के लेखन की समीक्षा कुछ यूँ करेगा की "प्रेमचंद के साहित्य से अगर गाँव और किसान निकाल दो तो कुछ बचता ही नही है (जैसा की अभी कुछ दिन पहले मेरे एक स्वयम्भू साहित्य-शौकीन ने की ) तो मैंने जो उस दिन उससे कहा वही आपसे भी कह रहा हूँ "मानव शरीर से प्राण निकाल दो और पूछो की फ़िर बचता क्या है ?" गाँव और किसान प्रेमचंद साहित्य के ही नही भारत के भी प्राण हैं । प्रेमचंद के साहित्य में भारत साँस लेता है । आपको अगर नही मिलता , तो चेतन और चेतना दोनों जिम्मेदार हैं ।


मोहम्मद रफी -
तुझे नगमों की जान अहले नज़र यूँ ही नही


कहते तेरे गीतों को दिल का हमसफ़र यूँ ही नही कहते


महफिलों के दामन में , साहिलों के आस पास


ये सदा गूंजेगी सदियों तक दिलों के आस पास ये



कॉल हैं हमारे अपने शहर के नौशाद साहब के जो उन्होंने रफी साहब के इंतकाल पर ३१ जुलाई १९८० को कहे थे । ३५ साल और २६०००० गाने । इतने लंबे सफर को ब्लॉग में समेट पाना तो मुमकिन नही है लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा की रफी साहब संगीत के उस सुनहरे दौर की अगुआई करते हैं जिसके बारे में पंडित जसराज ने कहा था की , तब संगीत सुनो तो सर हिलता था , आज पैर हिलते हैं ,स्तर कहाँ पहुँचा है इसका अंदाज़ आप लगा सकते हैं ।


हिमांशु बाजपेयी

टिप्पणियाँ

  1. दोनों ही लोग अपने क्षेत्र के पुरोधा है। मेरी भी उन दो महान हस्तियों को श्रद्धांजली।

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