मोहभंग....
प्रेम कविताओं के बीच के
संक्षिप्त अंतराल में
याद आती रही
बच्चों की फीस
घर का राशन
पेट्रोल के दाम
मां की दवा
पिता का इलाज
पत्नी की फटी साड़ियां
अपने पुराने गल चुके जूते
दफ्तर के दोस्तों से लिया गया
उधार
गली का बनिया
बॉस का गुस्सा
कागज़ों के बढ़ते दाम
प्रकाशक की अकड़
और फिर स्याही
हल्की पड़ने लगी
कलम रुक के चलने लगी
और
एक दिन घर पर
खिलौने की ज़िद करते
अपने बच्चे को
पीटने के बाद
उसने तय किया
कि अब वो प्रेम कविताएं
नहीं लिखेगा....
मयंक सक्सेना
ehsaason ki kirchane aisi hi hoti hain ...
जवाब देंहटाएंमन की सहजता जीवन की कठिनाईयों के आगे कभी कभी असहज हो जाती है ....किन्तु ये क्षणिक ही होता है ...प्रेम ऐसा भाव है जो आपको छोड़ कर कहीं जायेगा नहीं .....आप भले ही थोड़ी देर को उसे छोड़ दें ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ...
बधाई ..एवं शुभकामनायें ...
http://urvija.parikalpnaa.com/2011/09/blog-post_04.html
जवाब देंहटाएंanupama ji se sahmta... aapko badhai...
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