हम बुद्धिजीवी हैं ...(भाग-1)
(ये कविता किन के लिए लिखी गई है, इसे लिखने से इसका मर्म समाप्त हो जाएगा...मैं जानता हूं कि आप जानते हैं...ये पहला भाग है, अगले का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा)
बिनायक सेन
लड़ रहे थे आदिवासियों के लिए
गांव में
और वो उनके साथ थे
अपने
एसी कमरों में बैठे
जब इरोम
अनशन पर थी
तो वो उड़ा रहे थे
पांच सितारा होटलों में
महंगी विदेशी शराब
जब गुजरात में
एक पूरी कौम का
खात्मा हो रहा था
तो वो डर से
वहां झांकने नहीं पहुंचे
जब जंगलों में
जल, जंगल और ज़मीन की
लड़ाई चालू थी
तब वो
सरकारी फंडिग के
दौरे पर
विदेशी रिसॉर्ट में
करवा रहे थे
मसाज
दलितों-वंचितों के घर
जब जले
तो वो सोते रहे
उठे और राख पर
बड़बड़ाने लगे
वो दलितों में
सवर्ण जो थे
और अब
जब लोग सड़कों पर हैं
वो फिर भी घरों में हैं
लोगों को
भीड़ बता रहे हैं
खारिज कर रहे हैं
आंदोलन से उन्हें
नफरत है
क्योंकि लोगों के साथ
आने के लिए
छोड़ना पड़ेगा
अपना एसी कमरा
और गर्मी बहुत है
-मयंक सक्सेना
लोगों के साथ
जवाब देंहटाएंआने के लिए
छोड़ना पड़ेगा
अपना एसी कमरा
और गर्मी बहुत है
!!!!!!!!!!!!!!!!!! bhyavah satya
यथार्थ अभिव्यक्ति :
जवाब देंहटाएंविनायक सेन हो या वैरागी चोला पहने स्वामी अग्निवेश, भ्रष्टाचार के विरुद्ध हुए आन्दोलन ने जहां हर आयु हर, हर वर्ग के व्यक्ति की आत्मा को झकझोर के रख दिया. उस दौरान इन तथाकथित समाजसेवकों द्वारा एसी कमरों की ठंडक से बाहर निकलने की ज़हमत ना उठा पाने और अन्ना हजारे जी की तुलना पागल हाथी से करने जैसी हरकतों ने, भ्रष्ट नेताओं के साथ-साथ इनका भी असली चेहरा जनता के सामने ला दिया.
जल्दी ही हमारे ब्लॉग की रचनाओं का एक संकलन संभावित है. मैं आपको पढता रहा हूँ, अच्छा लगता है.
जवाब देंहटाएंसादर आमंत्रण आपको... ताकि लोग हमारे इस प्रकाशन के द्वारा आपकी सर्वश्रेष्ट रचना को हमेशा के लिए संजो कर रख सकें और सदैव लाभान्वित हो सकें.
हमसे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से जुड़े लेखकों का संकलन छापने के लिए एक प्रकाशन गृह सहर्ष सहमत है. हमें प्रसन्नता होगी इस प्रयास में आपका सार्थक साथ पाकर, यदि संभव हो सके तो आपके शब्दों को पुस्तिकाबद्ध रूप में देखकर.
सादर, संवाद की अपेक्षा में... जन सुनवाई
अधिक जानकारी हेतु लिंक http://jan-sunwai.blogspot.com/2011/09/blog-post.html