मूर्ख बने रहो...“मुझे क्या पता....” का मंत्र जपो....
न संतान का...न सम्पत्ति का...न यश का...न श्रेय का...दुनिया में सबसे बड़ा कोई सुख अगर है तो बस मूर्ख बने रहने का सुख है।
आप माने न मानें मूर्ख दिखने और बने रहने में (मूर्ख होने में नहीं) जो अद्बुत सुख है वो दुनिया के किसी भी विलास-ऐश्वर्य मे नहीं है।
मूर्ख दिखने के फायदे तो आपको कई लोग बताएंगे पर आपको बताते हैं कि कैसे बना जाता है मूर्ख और किस तरह से दुनिया भर में तमाम अक्लमंद लोग मूर्ख बन कर मज़े से ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं.....
महंगाई चरम पर है, सरकार मू्र्ख बनी बैठी है....कहती है हमें नहीं पता महंगाई कैसे आई, यह भी नहीं पता कैसे जाएगा....हम तो मूर्ख हैं....अब समझेगी तो दुख होगा, सो बने रहो मूर्ख....
सीधे सादे आदिवासी कैसे बन गए माओवादी? ...हमें नहीं पता कैसे बन गए...जा कर उन्हीं से पूछिए...हमें समझ कर क्या करना...समझेंगे तो अपने ज़ुल्मों का...उपेक्षा का...अत्याचारों का हिसाब भी देना पड़ेगा....सो बने रहो मूर्ख....
महिला आरक्षण बिल राज्यसभा से गिरा तो लोकसभा में अटक गया...नेता जी से पूछा कि क्यों हुआ भई ऐसा...नेताजी बोले...हमें तो पता ही नहीं...लो भई मस्त रहो...बने रहो मूर्ख....
दो दिन पहले तक आयशा सिद्दीकी, शोएब मलिक की आपा थीं...अब उनको तलाक दे दिया....आंय दो दिन में आपा...बेगम बन गई...शोएब बोले हमें नहीं पता...जवाब ढूंढ लेंगे पहले सानिया से निकाह हो जाए...सो बने रहो मूर्ख....
टीवी चैनल दो दिन पहले चिल्ला रहे ते ये शादी नहीं हो सकती...अब कह रहे हैं सानिया तेरी अंखिया सुरमेदानी....पब्लिक बोली ऐसा क्यों...रिपोर्टर बोले पता नहीं...बढ़िया है बने रहो मूर्ख....
बहन जी (अपनी यूपी वाली) के गले में किसी ने नोटों की माला डाल दी...ऐसी वैसी नहीं...1000-1000 के नोटों की...सबने अपनी औकात के हिसाब से कीमत लगाई....किसी ने दस हज़ार तो किसी ने दस करोड़ की बताई...जब अदालत से लेकर ऐजेंसियों तक सब पूछेंगे कि किसने पहनाई माला... तो बहन जी के साथ उनके चमचे कहेंगे...हमें पता ही नहीं....सही है बने रहो मूर्ख....
अफगानिस्तान....ईराक....तबाह हो गए...जहां तहां देखो बम या तो गिर के फटते हैं...या फट के गिरते हैं....कभी-कभी उसमें आतंकी भी मर जाते हैं...और ज़्यादातर बच्चे और महिलाएं....और जब अंकल सैंम से पूछा जाता है कि क्यों भई आपकी फौजें ये क्या कर रही हैं...तो वो अंग्रेज़ी में बुदबुदा देते हैं....”हमें नहीं पता....” लगे रहो....बने रहो मूर्ख...शाबास....
न्यूज़रूम में आउटपुट हेड चिल्ला रहा है...इतनी ज़रूरी बाइट कैसे मिस हो गई.....कौन कटवा रहा था पैकेज....रनडाउन प्रोड्यूसर कहता है...सर पता नहीं....बच गए...बने रहो मूर्ख....
पिताजी खोपड़ी पर हाथ धरे चीख रहे थे....कलपते हुए हमसे बोले...इस बार तो तीन ट्यूशन लगवाई थी...फेल कैसे हो गए...हमने धीरे से कहा...पता नहीं कैसे....बच गए....बने रहो मूर्ख....
गाड़ी पार्क कर रहे थे...पीछे खड़ी गाड़ी को ठोंक दिया....वो उतर कर आया...बोला ये कैसे हुआ....हमने भी कह दिया...भाई साहब...हमें पता नहीं चला कि पीछे आप थे....जे बात...बने रहो मूर्ख....
दरअसल मूर्खता में ही असली आनंद है...दुनिया भर की तमाम मुश्किलों से निजात का सबसे आसान तरीका है ....मूर्ख बन जाओ....हर बात पर एक ही जवाब दो...”हमें नहीं पता...” आपको बताऊं कि दुनिया में इससे ज़्यादा मूर्खतापूर्ण कोई जवाब नहीं हो सकता है....पर ज़्यादातर मौकों पर ये सबसे समझदारी भरा जवाब साबित होता है....और आपको आने वाली मुसीबतों से साफ बचा ले जाता है....
और अब कि जब कोई अच्छा ब्लॉगर ब्लॉगिंग छोड़े....और आप पर सवाल उठें....आपकी की गई बेनामी टिप्पणियों को लेकर लोग आप पर ही शक करें....असभ्य भाषा का प्रयोग करने पर आपसे लोग शिकायत करें...कि “क्यों हे ब्लॉगर....तूने ऐसा क्यों किया....”…….
तो आप चुपचाप मूर्ख बन जाइएगा
और
सर्वबाधाहारी सुनहरा मंत्र दोहरा दीजिएगा....
”मुझे नहीं पता....”
सलाह:रोज़ सुबह शाम नियम पूर्वक एक ह्रष्ट-पुष्ट गधे को ढूंढ कर उसको ससम्मान भोजन कराएं....और घर पर उसका रंगीन चित्र लगा कर...उसे धूप दीप दिखा कर "मुझे नहीं पता" के सर्वबाधाहारी मंत्र का जाप करें...सारे कष्ट दूर होंगे....सुविधा के लिए चित्र दिया गया है.....
इसी चित्र को प्रिन्ट करके फ्रेम करा लेते हैं. आभार. :)
जवाब देंहटाएंइस गधे का पॉकेट यानी जेबी संस्करण उपलब्ध करवाया जाये जिसमें सदा धारण किए रहें। वैसे इसके लॉकेट, की रिंग्स, अंगूठियां इत्यादि भी बनाई जा सकती हैं। मेरे पास सभी सैम्पल भिजवा दीजिएगा मयंक भाई। तब मत कहना कि मुझे नहीं पता। क्योंकि आप जानते हैं कि मुझको तो पता है कि आपको क्या पता है और क्या नहीं ?
जवाब देंहटाएंsahi tarah se jeene ka sampoorn jeevan darshan samaaya hai post men
जवाब देंहटाएंbahut khoob
aabhaar
बहुत अच्छा लिखा...मेरे पिता श्री जब लेक्चरर थे तब उनके कॉलेज में प्रिंसिपल हुआ करते थे...अवस्थी जी...बहुत सीधे...मृदुभाषी...सब उन्हें मूर्ख कहते थे...पापा कहते थे कि वे सबसे बड़े बुद्धिमान हैं...15 साल से प्रिसिपल हैं..पूरे ज़िले को बेवकूफ बनकर बेवकूफ बना रहे हैं...किसी भी असफलता के लिए उन्हें दोष नहीं दिया जाता...कहा जाता है क्या करें बेचारे...लेकिन अब मेरे पिता श्री 16 साल से उसी कॉलेज में प्रिसिपल हैं...बेहद सख्त..ईमानदार...और क्रोधी की छवि के साथ...कॉलेज सबसे खराब से सबसे अच्छा बन चुका है...पापा को राष्ट्रपति पुरस्कार मिल चुका है...बेटा मयंक सफलता का एकमात्र फार्मूला नहीं होता...ये इंसान पर है कि वो कौन सा फॉर्मूला अपनाए...तुम्हें आशीर्वाद...हमेशा की तरह...अपने रास्ते पर चलो...
जवाब देंहटाएंpar updesh kushal bahutere ..
जवाब देंहटाएंहिमांशु...क्या तुम मुझसे इस पर अमल कर के...सरकार...शोएब मलिक...या अमेरिका जैसे बेवकूफ बने रहने की उम्मीद करते हो....
जवाब देंहटाएंक्या हमारे तुम्हारे लोग भी ऐसा कर सकते हैं....
mai ese copy kar raha hoon
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