भोला मन जाने अमर मेरी काया
जैसे ओस
तलाशती है दूब को,
जैसे धूप
तलाशती है झील को
जैसे सच
तलाशता है तर्क को
जैसे अघोरी
साधता है नर्क को
जैसे हमशक्ल
तलाशता है फर्क को
मैं तलाशता हूँ
अपना नाम और धाम
जिस नाम से तुम
मुझे जानते हो
जिस शक्ल से
पहचानते हो
वह नहीं हूँ मैं
फिर भी
भोला मन जाने अमर मेरी काया
आलोक तोमर
(रचनाकार वरिष्ठ पत्रकार, फिल्म और टेलीविज़न के पटकथा लेखक हैं....)
Badi sanjeeda rachana hai!
जवाब देंहटाएंbahut khoob likha sir...
जवाब देंहटाएंआलोक तोमर जी की रचना पसंद आई.
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