कौन से मौसम में चले आए हो बादल...

बेमौसम बरसात ने दिल्ली को भिगो डाला है...अब बैठे ठाले मोबाइल में कुछ अशआर लिखे...उन्हें दिल्ली की बेमौसम लेकिन बामज़ा बारिश को समर्पित करता हूं...

ये कौन से मौसम में चले आए हो बादल
क्या तुम भी शायरों की तबीयत में ढल गए

तपते थे जिस्म तुमने भिगोए हैं इस तरह
मौसम की तरह रूह के तेवर बदल गए

जैसे मिजाज़ ए यार बदलता है यक ब यक
तुम आए और प्यास के मंज़र मचल गए

भीगा हूं मैं भी, यार भी भीगा हुआ होगा
बस बारिशों में अबकि तगाफुल निकल गए

है जिस्म भी हारा हुआ और रूह परेशां
आए जो तुम गरज के तो अरमान पल गए

हर रात तुम्हारे लिए जलता रहा हूं मैं
पानी में लगी आग देखो तुम भी जल गए...

मयंक सक्सेना

टिप्पणियाँ

  1. ये कौन से मौसम में चले आए हो बादल
    क्या तुम भी शायरों की तबीयत में ढल गए

    तपते थे जिस्म तुमने भिगोए हैं इस तरह
    मौसम की तरह रूह के तेवर बदल गए
    Kya baat hai! Nihayat sundar gazal!

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  2. बेहतरीन.....बहुत उम्दा....एक-एक शेर दमदार...

    ये बादल क्या जानें मौसम की हकीकत
    जब जिधर हवा चली उस ओर चल दिए
    वैसे तो राह-ए-उल्फत में एक कदम है मुहाल
    कुछ यूं बुलाया तुमने कि हम भी चल दिए

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  3. ये कौन से मौसम में चले आए हो बादल
    क्या तुम भी शायरों की तबीयत में ढल गए... waah, kya baat hai !

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  4. हर रात तुम्हारे लिए जलता रहा हूं मैं
    पानी में लगी आग देखो तुम भी जल गए..

    bahut hi khoobsurut khayaal he janab!
    badhai kabule!

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  5. है जिस्म भी हारा हुआ और रूह परेशां
    आए जो तुम गरज के तो अरमान पल गए
    ...बहुत खूब...हम तो आपके लेखनी के मुरीद हो गए हैं....

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  6. है जिस्म भी हारा हुआ और रूह परेशां
    आए जो तुम गरज के तो अरमान पल गए

    बढिया ।

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  7. यूँ आज़ फिर बादल के अन्दाज़ बदल गये

    लब थरथराये और फिर अरमाँ मचल गये

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