नन्ही पुजारन
हाल ही में मशहूर शायर मजाज़ लखनवी की एक नज़्म हाथ लगी सोचा उसे आपके नज़्र कर दूँ ....... शायद पत्थर दिल कुछ पिघलें ( पर उसके लिए भाव समझना होगा, जो शायद हमारी अब आदत नहीं रही !)
नन्ही पुजारन
इक नन्ही मुन्नी सी पुजारन, पतली बाहें, पतली गर्दन।
भोर भये मन्दिर आयी है, आई नहीं है माँ लायी है।
वक्त से पहले जाग उठी है, नींद भी आँखों में भरी है।
ठोडी तक लट आयी हुई है, यूँही सी लहराई हुई है।
आँखों में तारों की चमक है, मुखडे पे चाँदी की झलक है।
कैसी सुन्दर है क्या कहिए, नन्ही सी एक सीता कहिए।
धूप चढे तारा चमका है, पत्थर पर एक फूल खिला है।
चाँद का टुकडा, फूल की डाली, कमसिन सीधी भोली-भाली।
कान में चाँदी की बाली है, हाथ में पीतल की थाली है।
दिल में लेकिन ध्यान नहीं है, पूजा का कुछ ज्ञान नहीं है।
कैसी भोली और सीधी है, मन्दिर की छत देख रही है।
माँ बढकर चुटकी लेती है, चुप चुप सी वो हँस देती है।
हँसना रोना उसका मजहब, उसको पूजा से क्या मतलब।
खुद तो आई है मन्दिर में, मन में उसका है गुडया घर में।
- मजाज़ लखनवी
umda behatareen. badhai.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सरस रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंआदत डाल अगर ली हमने औ '' समझ लिए गर भाव
जवाब देंहटाएंपत्थर दिल पिघलेंगे औ ''उनके दिल पर कर देंगे ये घाव
जारी रखें ....