वो कहते हैं कि..... हैप्पी बड्डे........




एक सुकून और खुशी का अहसास है...तो साथ ही साथ ये एक चिंता भी है कि आज ताज़ा हवा दो साल का हो गया....आज से करीब दो साल पहले एक शिशु रूप में ये ब्लॉग मैने और मेरे सखा हरीश बरौनिया ने मिल के शुरु किया था....और आज ये दो साल का हो गया और वक्त कैसे गुज़रता गया पता ही नहीं चला....सच में वाकई बच्चे बहुत जल्दी बड़े हो जाते हैं....सुकून और खुशी इस बात की है कि नौकरी और ज़िंदगी की जद्दोजहद के बीच भी ताज़ा हवा बहती रही.... और चिंता इस बात की कि हाल के दिनों में इसे ज़्यादा वक्त नहीं दे पा रहा हूं...पर जब जन्मा है तो बच्चा पल ही जाएगा ये सोच कर ऐतबार कर लेता हूं इसके आगे भी चलते रहने का....आज तक इस पर जो कुछ भी लिखा गया आप सब ने हमेशा हौसला बढ़ाया....एक एक का नाम लेना न तो आसान है....और न ही उचित क्योंकि एक भी नाम छूटा तो बवाल समझो....सो आप सभी का आभार....और आभार भी क्यों....आप नहीं हौसला बढ़ाएंगे तो कौन बढ़ाएगा....
लगातार ब्लॉगिंग कर के एक बात जो और समझ में आई वो ये है कि आप जब भी कुछ लिखें तो परवाह न करें कि क्या होगा...क्यों परवाह कर के भी कोई फायदा नहीं....ब्लॉगिंग का जन्म ही अपनी कम कहने दूसरे की उधेड़ने के लिए ज़्यादा हुआ है...हालांकि इसने अभिव्यक्ति के मायने बदले भी हैं....और बिगाड़े भी....पर फिर भी सकरात्मक असर ज़्यादा रहे...एक पत्रकार होने के नाते काम की जो भूख दफ्तर शांत नहीं कर पाया वो ब्लॉगिंग ने शांत की....सबसे अच्छी बात ये है कि ब्लॉगिंग के पुरोधा और शिखर पुरुष अन्य क्षेत्रों की तरह नहीं है...वो भी हमारी आप की तरह आम आदमी हैं...ज़मीन के आदमी हैं...और आपको सहज उपलब्ध हैं....और नए ब्लॉगर को हमेशा हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया में परिवार जैसा ही लगता है...जहां तमाम मतभेद हैं...पर फिर भी सब एक साथ हैं....
हाल के दिनों में थोड़ी तल्खी और राजनीतिक गतिविधियां आई....कुछ एक लोग धार्मिक-जातिगत-वैचारिक ज़हर उगलने लगे.....(किसी एक पक्ष की बात नहीं कर रहा हूं) पर हां अभी तक ताज़ा हवा इससे बचा रहा है....लेकिन ऐसे लोग बहुत कम हैं....और मेरा अब तक का दो साल का अनुभव बेहतरीन रहा है....हां टिप्पणियों की संख्या कम हुई है क्योंकि ज़्यादातर पाठक खुद भी ब्लॉगर हो गए हैं....पर ये भी अच्छा ही है, अच्छा होता कि पाठक संख्या भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ती....
एक दो लोगों का नाम ज़रूर लेना चाहूंगा, पहले तो श्री श्री श्री 1008 समीर लाल उड़नतश्तरी जी महाराज का जो मेरे लिए दुनिया का आठवां अजूबा हैं...पता नहीं कैसे इतना पढ़ लेते हैं....हर अच्छी पोस्ट पढ़ते हैं...और इसके बाद इतना समय भी बचा लेते हैं कि लिख भी डालते हैं...खैर टिप्पणियों के रेकॉर्ड होल्डर तो वो हैं ही....आज तक हर अच्छी पोस्ट पर उनकी टिप्पणी मिली....भले ही वो अकेली टिप्पणी रही हो....इसके बाद है नाम अनुपम अग्रवाल जी का जनाब पेशे से सरकारी इंजीनियर हैं...पर लेखन और कविता का ऐसा शौक कि मुझसे फोन पर ब्लॉगिंग की दीक्षा ली और ब्लॉग जगत को बेहतरीन पोस्टों से नवाज़ दिया...ऐसा जुनून नहीं देखा भैया....गजबै आदमी हैं....हालांकि आजकल लिखते नहीं न जाने क्यूं तो इस मौके पर अनुरोध करूंगा कि लिखना फिर शुरु कर दें....फिर है नम्बर अपने हिमांशु भैया....उर्फ़ कवि हिम...उर्फ़ हिम लखनवी का....अब नामै तीन ठो हैं तो आदमी तो खतरनाक होंगे ही...हिमांशु भैया गुरु जी गुरू जी करते करते हमका गुड़ बनाए दिहिन और खुद शक्कर हुई गए....जनाब की उम्र है 22 साल और काव्य संग्रह छप गया है अमां यार....यहै नाम ब्लॉग का भी है और ब्लॉग पर लिखी गई रचनाओं का ही संग्रह है....वो भी बहुत जोर लगाते हैं कि हम लिखते रहें...कई दिन तक कुछ न लिखो तो फोन करके कह देते हैं कि बहुत दिन हो गए लिख काहे नहीं रहे हैं....इसके अलावा संगीता पुरी जी से भी एक बार बड़ी लम्बी बहस चली थी सो उनका भी धन्यवाद क्योंकि इसी बहाने बहुत दिन बाद फिर से लिखना शुरु कर दिया था....देविका भी डांटती रहती है कि लिखना क्यों छोड़ दिया है....और हां गुंजन भाई जब ब्लॉग पढ़ते दिखते हैं तो भी शर्म आ जाती है....
और भी बहुत नाम हैं....पर सबको धन्यवाद तो दे ही चुका हूं....पर आज दूसरी सालगिरह पर एक वादा कि अब नियमित लिखूंगा....नौकरी के पहलू के सिवा जन्नतें और भी हैं....और ताज़ा हवा बेसाख्ता चलेगी...गजबै चलेगी....और हां पोस्ट पढ़ कर निकल मत लीजिएगा...विश करिएगा...वो क्या कहते हैं अंग्रेज़ी में हैप्पी बड्डे....और कवि एकांत श्रीवास्तव की एक कविता जो जन्मदिन की खुशी और चिंता दोनो को ज़ाहिर करती है उसके साथ छोड़ता हूं कलम....



आकाश के थाल में
तारों के झिलमिलाते दीप रखकर
उतारो मेरी आरती

दूध मोंगरा का सफ़ेद फूल
धरो मेरे सिर पर
गुलाल से रंगे सोनामासुरी से
लगाओ मेरे माथ पर टीका
सरई के दोने में भरे
कामधेनु के दूध से जुटःआरो मेरा मुँह

कि नहीं आई
कोई सनसनाती गोली मेरे सीने में
कि नहीं भोंका गया मुझे छुरा
कि नहीं जलाया गया मेरा घर
कि वर्ष भर जीवित रहा मैं ।

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