पूर्णता अपूर्ण है.....
सबसे गहरी कविताएं,
निरुद्देश्य लिखी गईं
जल्दबाज़ी में उकेरे गए
सबसे शानदार चित्र
हड़बड़ी में गढ़े गए
सबसे अद्भुत शिल्प
सबसे महान अविष्कार
हो गए अनजाने में ही
सबसे पवित्र है
असफल पहला प्रेम
कभी सरल रेखा में
रास्ता नहीं बनाती नदियां
दिन भर आकार बदलती हैं
परछाईयां
हर रोज़ चांद का चेहरा
बदल जाता है
दिन भी कभी छोटा
कभी बड़ा हो जाता है
कभी भी पेड़ पर हर फल
एक सा नहीं होता
ठीक वैसे, जैसे एक सी नहीं
हम सबकी शक्लें
सबसे सुंदर स्त्री भी
सर्वांग सुंदर नहीं होती
सबसे पवित्र लोगों के सच
सबसे पतित रहे हैं
सबसे महान लोगों ने कराया
सबसे ज़्यादा लज्जित
सबसे ईमानदार लोगों के घर से
सबसे ज़्यादा सम्पत्ति मिली
सबसे सच्चा आदमी
उम्र भर बोलता रहा झूठ...
और ठीक ऐसे ही
कभी भी कुछ भी
पूर्ण नहीं है
न तो कुछ भी
सच है पूरा...न झूठ....
पूर्णता केवल एक मिथक है
एक छलावा
ठीक ईश्वर की तरह ही
एक असम्भव लक्ष्य...
जिस पर हम
केवल रुदन करते हैं व्यर्थ
कुछ भी पूर्ण नहीं है
न शब्द और न अर्थ
हम केवल मानते हैं कि
पूर्ण होगा शायद कुछ....
जो वस्तुतः नहीं है कहीं
केवल अपूर्णता ही तो पूर्ण है
अपने अर्थ में....
और वैसे ही हम सब
पूरी तरह अपूर्ण...........
मयंक सक्सेना (9 जुलाई, 2010)
बहुत सुन्दर और गहरी बात करती हुई रचना....अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंअजी मयंक जी, कहां से लाये हो निकालकर?\बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंBahut sahi kaha ...poornatv to kewal ishwar ko prapt hai,uske bandon ko nahi..
जवाब देंहटाएंBahut sundar rachana hai yah!
kya baat ! kya baat ! kya baat !
जवाब देंहटाएंone of the best of yours.
जवाब देंहटाएंहम सब अपने बारे में इससे भी अधिक जानते पहचानते हैं। आपने स्वीकार लिया है, सब स्वीकारते भी नहीं हैं। सच्च।
जवाब देंहटाएंjanmdin ki badhai
जवाब देंहटाएंhttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
बेहद खूबसूरत रचना....साधुवाद.
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