बीज कभी नहीं मरते हैं...
कभी मन से
रोपे गए
कभी अनजाने में
गिर के ज़मीन पर
दब गए
ज़मीन में
जैसे थोपे गए
कभी
लगातार बरसातों से
बेअसर
कभी उग आते
कुछ बूंदों से ही
भीगकर
चिड़ियों के
छिटकाए
किसानों के बिखराए
बचपन में फेंके गए
भूले बिसराए
खेतों में
खलिहानों में
गलियारों में
आंगनों में
मकानों की बाहरी
दीवारों में
पुरानी उजाड़
खंडहर होती
मिलों में
उदास
सुनसान दिलों में
फूटते
बंज़र ज़मीन का
सीना फाड़ कर
अचानक
मृत्यु की गोद से
निकल होते अमर
अंकुरित होते
छाती तान कर
ऊपर की ओर
चढ़ते
फिर हर रोज़
बढ़ते
न जाने कितने बरस
मर कर भी
जिया करते हैं
अपने अंद समाए
पूरी एक
ज़िंदगी मुकम्मल
बंजर ज़मीन हो
या दिल
बीज
कभी नहीं मरते हैं...
मयंक सक्सेना
बहुत सुन्दर...अच्छी लगी रचना.
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
जवाब देंहटाएंबंजर ज़मीन हो
जवाब देंहटाएंया दिल
बीज
कभी नहीं मरते हैं...
बहुत सुन्दर ....
चिड़ियों के
जवाब देंहटाएंछिटकाए
किसानों के बिखराए
बचपन में फेंके गए
भूले बिसराए
sundar panktiyan hain
सुंदर भाव समेटे हुए रचना ,बधाई ।
जवाब देंहटाएंबीज को बस अदद ज़मीन की तलाश होती है .... बहुत अच्छा लिखा है ...
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