कालजयी...प्रगतिशील...साहित्कार....

हम माओवादियों को

तब मानेंगे आदिवासी

जब

खत्म हो चुका होगा

वर्ग संघर्ष

जंगलों में फैला खून

प्रतिष्ठित कर देगा

पूंजीवाद का उत्कर्ष


जब

सारी श्रमिक महिलाएं

गाभिन हो जाएंगी

मालिकों के बलात्कार से

तब

रच डालेंगे हम

आधी आबादी का

मुक्तिरण

अपनी कलम की धार से


जब शोषण की अतिरेकता से

शोषित ही

समाप्त हो जाएंगे

तब चारों ओर

हमारे गद्य काव्य

सर्वहारा को न्याय दिलाने

व्याप्त हो जाएंगे


जब नहीं होगी

हमारी किंचित भी आवश्यक्ता

बस तभी उपस्थित होंगे

हम

हर बार....

हम

कालजयी....प्रगतिशील....

साहित्यकार...


(ये कविता 18 मई 2010 को इंडिया हैबिटेट सेंटर के गुलमोहर सभागार में ओम थानवी के ब्लॉगिंग को दिशाहीन और अहम से भरी बताने के बाद....और राजेंद्र यादव के इस वक्तव्य के बीच लिखी गई कि भाषा साहित्यकार की बपौती है....और आम आदमी साहित्य नहीं रच सकता....दो दिन से पसोपेश में हूं कि जो मैं लिखता हूं वह साहित्य नहीं इन दो लोगों ने ऐसा कह दिया है....साहित्य नहीं है तो ये क्या है....और साहित्य है तो क्या मैं आम आदमी नहीं रहा....बाकी CAVS संचार पर विस्तृत विचार मंथन करूंगा इस आयोजन पर...जिसका नाम था "मीडिया में खत्म होती साहित्य की जगह".....अविनाश भाई अच्छा लगता अगर वक्ताओं के नाम पट्टिकाओ पर हिंदी में छपे होते....हालांकि कार्यक्रम मैं मानता हूं सफल रहा....)

मयंक सक्सेना

9310797184


टिप्पणियाँ

  1. कविता असलियत होती है क्‍या ? कल्‍पना कविता होती है। कविता कविता ही होती है और वही है यहां। नाम अंग्रेजी में रखकर यह बतलाया गया है कि हम हिंदी में बहसतलब कर रहे हैं तो ये न समझें कि हमें अंग्रेजी नहीं आती है।

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  2. आपकी कविता तो वाकई जानदार है, साथ ही साथ जिस प्राकर गाभिन शब्‍द का प्रयोग आपने क‍र डाला वो भी चमत्‍कृत करने वाला है, कविता के बाद 18 जून 2010 की तिथि का उल्‍लेख आपने किया है जो अभी आयी नही है।

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  4. Kya kahun? Nahi samajh pa rahi..Har tasveer ke do rukh hote hain itnahi kah sakti hun..

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  5. kavita to achchi nahi hai lekin aapka sandesh spasht hai, ek aur baat aaj jo maaovaadi kar rahe hain kam se kam ab wo samvedna ke yogya nahi hain....bilkul nahin...


    farsi ki ek kahawat hai--- saahitya mehnat maangta hai, aalsi saahitya mein na aayein to achcha hai,

    bhasha kisi ki bapauti nahi, aisa nahi ki aam aadmi saahitya nahi rach sakta lekin kuch bhi likh dena saahitya nahi hai........wo aam aadmi likhe ya saahityakaar

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  6. कभी विद्रोही से, कभी संवेदनशील तो कभी यूं ही..एसा व्यक्तित्व मुझे पसंद है. जो आपकी रचनाओ में, आपकी प्रोफाइल में झलक रहा है. साहित्य क्या है, पत्रकारिता क्या है और जो आज जारी है वो क्या? ये सिर्फ सवाल है. जिनके उत्तर देकर या कहू तर्क देकर समय जाया करना है. मै मानता हूँ इस तरह समय जाया करने से बेहतर है हम कोई बेहतरीन किताब पढ़ ले.../ न न इनकी कभी नहीं जिनका जिक्र क्या है.., इन्हें मै नहीं पढता, राजेंद्र यादव जैसो से तो मै बहुत दूर हूँ, शायद इसीलिए खुद को पढ़ा लिखा मानने में गर्व होता है.

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