शहर, खिड़की और लोग - 1 (ब्लॉगिंग में वापसी)
इस नई श्रृंखला, #शहरखिड़कीऔरलोग के ज़रिए, ब्लॉगिंग की दुनिया में वापसी कर रहा हूं...अब लगा कि लौटना चाहिए...4 साल बाद आ रहा हूं...देखते हैं कि क्या होता है...इसीलिए कोई डोमेन या लॉंचिंग जैसे मामले को नहीं सोच रहा, बस ये सोच रहा हूं कि अब नियमित लिख सकूं...इस सीरीज़ पर किताब का इरादा है...तो आप बताएं कि किताब आनी चाहिए या नहीं...
- मयंक सक्सेना
सुबह के 5 बजने वाले हैं...नीचे एक बिल्ली का बच्चा रो रहा है...एक ट्रक अभी कुछ दूर से गुज़रा है...एक औरत है, जो इस वक्त रोज़ पुराने गाने सुनती है...दूर से आवाज़ आती है...एक और औरत है, जो रात को 1 बजे रोज़ किचन में काम करने आती है...एक लड़का है, जो भविष्य से इतना डरा हुआ है कि रोज़ इस वक्त अपने कमरे में टहल कर किताब में ख़ौफ़नाक़ सपने ढूंढ रहा होता है...एक लड़की है, जो अभी कमरे में आई है, फोन पर बात कर रही है और कुछ देर में काम पर निकल जाएगी...उसके रोने की आवाज़ भी आती है कई बार...
ये दुनिया है और सब जो खुश दिखते हैं, वो सब दुखी हैं...सब अकेले हैं अपने भय के साथ...सब भविष्य को बनाना चाहते हैं...सबका वर्तमान इसी चिंता में खराब होता जा रहा है...इतने डरे हुए हैं लोग कि वो औरत अपने गाने बंद कर देगी तो उसकी लाश उसी शाम मिल जाए शायद...हालांकि उसकी लाश गाने बजने के बाद भी ऐसे ही मिले शायद...वो औरत बर्तन उठा कर शायद उसी 1 बजे के वक्त किसी के सिर पर मार देना चाहती हो और रोज़ यही सोचते हुए, बर्तन धोती हो...वो लड़की किसी रोज़ फोन को बंद कर, खिड़की का पर्दा गिरा देर तक सोना चाहती हो...वो लड़का किताबों को कुछ रोज़ बंद कर, सिर्फ समंदर किनारे बैठ कर लहरें गिनना चाहता हो...और सब रोज़ ये सोचते हैं...और फिर भविष्य उनको डराता है...डर कर वर्तमान मर जाता है...
इस कमरे में कई साल तक, संगीत और लोगों का शोर रहा है...अब सन्नाटा है, तो मैं क्या नहीं देख पा रहा हूं...कितनी दूर की आवाज़ें कानों में आती हैं...ट्रक पास से नहीं गुज़रा था, अभी सोचा है कि सड़क कोई आधा किलोमीटर दूर है...आज तक कोई ट्रक क्यों नहीं निकला यहां से... मिथुन और आमिर निकल गए होंगे, अपने काम पर...सामान लाद कर दुकान सजाएंगे कुछ देर में...मैं सोने जाऊंगा अब...अगर नींद आई तो...एक और ट्रक निकला है...आज कल ये दूसरा ट्रक सोने की अलार्म घड़ी है...सोने की अलार्म घड़ी जानते हैं आप...वही जो भविष्य के सपनों में नहीं ले जाती...वर्तमान की उदासी और त्रासदी को देखते हुए कहती है कि कुछ देर सो जाओ...ये लोग सुबह उठ जाने के आदी हैं...रात को जल्दी सोते हैं...तुम लेखक हो और जल्दी मर जाओगे...जाने के पहले थोड़ी नींद ले लो...क्या पता सफ़र में मिलेगी कि नहीं...ट्रक काफी दूर निकल गया होगा अब तक...
#वोअकेलाहीरहा
#शहरखिड़कीऔरलोग
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- मयंक सक्सेना
मुंबई की सोसायटी और खिड़कियां स्रोत - https://www.thenational.ae/world/mumbai-s-housing-crunch-set-to-deepen-1.87232 |
सुबह के 5 बजने वाले हैं...नीचे एक बिल्ली का बच्चा रो रहा है...एक ट्रक अभी कुछ दूर से गुज़रा है...एक औरत है, जो इस वक्त रोज़ पुराने गाने सुनती है...दूर से आवाज़ आती है...एक और औरत है, जो रात को 1 बजे रोज़ किचन में काम करने आती है...एक लड़का है, जो भविष्य से इतना डरा हुआ है कि रोज़ इस वक्त अपने कमरे में टहल कर किताब में ख़ौफ़नाक़ सपने ढूंढ रहा होता है...एक लड़की है, जो अभी कमरे में आई है, फोन पर बात कर रही है और कुछ देर में काम पर निकल जाएगी...उसके रोने की आवाज़ भी आती है कई बार...
ये दुनिया है और सब जो खुश दिखते हैं, वो सब दुखी हैं...सब अकेले हैं अपने भय के साथ...सब भविष्य को बनाना चाहते हैं...सबका वर्तमान इसी चिंता में खराब होता जा रहा है...इतने डरे हुए हैं लोग कि वो औरत अपने गाने बंद कर देगी तो उसकी लाश उसी शाम मिल जाए शायद...हालांकि उसकी लाश गाने बजने के बाद भी ऐसे ही मिले शायद...वो औरत बर्तन उठा कर शायद उसी 1 बजे के वक्त किसी के सिर पर मार देना चाहती हो और रोज़ यही सोचते हुए, बर्तन धोती हो...वो लड़की किसी रोज़ फोन को बंद कर, खिड़की का पर्दा गिरा देर तक सोना चाहती हो...वो लड़का किताबों को कुछ रोज़ बंद कर, सिर्फ समंदर किनारे बैठ कर लहरें गिनना चाहता हो...और सब रोज़ ये सोचते हैं...और फिर भविष्य उनको डराता है...डर कर वर्तमान मर जाता है...
इस कमरे में कई साल तक, संगीत और लोगों का शोर रहा है...अब सन्नाटा है, तो मैं क्या नहीं देख पा रहा हूं...कितनी दूर की आवाज़ें कानों में आती हैं...ट्रक पास से नहीं गुज़रा था, अभी सोचा है कि सड़क कोई आधा किलोमीटर दूर है...आज तक कोई ट्रक क्यों नहीं निकला यहां से... मिथुन और आमिर निकल गए होंगे, अपने काम पर...सामान लाद कर दुकान सजाएंगे कुछ देर में...मैं सोने जाऊंगा अब...अगर नींद आई तो...एक और ट्रक निकला है...आज कल ये दूसरा ट्रक सोने की अलार्म घड़ी है...सोने की अलार्म घड़ी जानते हैं आप...वही जो भविष्य के सपनों में नहीं ले जाती...वर्तमान की उदासी और त्रासदी को देखते हुए कहती है कि कुछ देर सो जाओ...ये लोग सुबह उठ जाने के आदी हैं...रात को जल्दी सोते हैं...तुम लेखक हो और जल्दी मर जाओगे...जाने के पहले थोड़ी नींद ले लो...क्या पता सफ़र में मिलेगी कि नहीं...ट्रक काफी दूर निकल गया होगा अब तक...
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ब्लॉग पर वापसी की ख़बर सुखद है। नाचीज़ ने कभी आपका ब्लॉग देखकर ही खुद का ब्लॉग बनाया था।
जवाब देंहटाएंब्लॉग के लिये सेलेक्ट की गई तस्वीर बहुत पसंद आई। और अब तक कि हर सीरीज पसंद आई है☺
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