रंगा सियार, अब तिरंगा सियार है...

रमेश कुमार जाल्ला, कई आतंकियों से मुठभेड़ के अगुआ रहे हैं...घायल हुए हैं...बुरी तरह घायल भी हुए हैं...अस्पताल में लम्बे समय तक भर्ती रहे हैं...रमेश कुमार जाल्ला को जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े वीरता पदक 'शेर ए कश्मीर' से भी सम्मानित किया जा चुका है...
यानी कि एक लाइन में कहा जाए, तो रमेश कुमार जाल्ला, वैसे ही पुलिस अधिकारी हैं, जिनको बीजेपी की भाषा में वीर-साहसी-देशभक्त-राष्ट्रवादी कहा जाए...(हमारी भाषा में कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी ही काफी है)...रमेश कुमार जाल्ला की ईमानदारी मशहूर है...उनकी निष्ठा पर संदेह कश्मीर में अभी तक नेशनल कांफ्रेंस या पीडीपी सरकार ने भी नहीं किया...
चलिए, अब जान लीजिए कि रमेश कुमार जाल्ला, उस विशेष जांच टीम के प्रमुख हैं, जिसने कठुआ रेप मामले में बच्ची की मंदिर में रेप और हत्या की जांच की है...उनकी ही चार्जशीट के मुताबिक मंदिर में 8 लोगों (जिसमें 4 पुलिसकर्मी शामिल हैं) ने आसिफा के साथ बेरहमी से रेप किया...उसकी हत्या की...हत्या करने के बाद सिर पत्थर पर दे मारा...और हत्या के बाद उसके शव से भी बलात्कार किया...(योगी जी का कब्र वाला बयान याद आया क्या?)
रमेश कुमार जाल्ला के लिए अब भाजपा के नेता और कार्यकर्ता सवाल उठा रहे हैं कि ये जांच करने वाला अधिकारी निष्ठावान नहीं है...(ओह...) रमेश कुमार जाल्ला और उनकी टीम को कठुआ के वकीलों ने (जो जम्मू-कश्मीर बार काउंसिल से समर्थित थे) अदालत और थाने के बाहर घेराव, तोड़फोड़, आगजनी कर के चार्जशीट दाखिल करने से रोकने की कोशिश की...
याद रहे कि ये वकील किसी वकील की गिरफ्तारी का विरोध नहीं कर रहे थे...ये वकील एक मंदिर की देखरेख करने वाले रिटायर्ड सरकारी कर्मी, उसके नाबालिग बेटे और उसके दोस्त और 4 पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी रोकने के लिए खड़े हुए थे...ये अन्याय के ख़िलाफ़ नारे नहीं लगा रहे थे...ये भारत माता की जय और जय श्री राम के नारे लगा रहे थे...
आप ने इससे पहले वकीलों या बार काउंसिल को कभी किसानों के लिए सड़क पर उतरते देखा? आपने कभी उनको निहत्थे लोगों पर गोली चलते या लाठी पड़ने के खिलाफ़ सड़क पर उतरते देखा? आपने कभी देखा उनको अपराधियों या भ्रष्ट नेताओं के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरते? आपने कभी उनको अदालत में होने वाली अनियमितता के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरते देखा...आपको अंदाज़ा भी है कि आपके वकील, कब न्याय की जगह एक राजनैतिक दल विशेष के सिपाही बन गए हैं...आपको लगता है कि कल को उसी 'जय श्री राम' वाले नारे वाली पार्टी का कोई नेता या कार्यकर्ता, आपके घर में घुस कर आपकी हत्या से लेकर कुछ भी (जो लिखा नहीं जा सकता..) करेगा, तो ये आपको न्याय दिलवाएंगे...और बार काउंसिल भी कुछ करेगा...आप ने किन के हाथ में देश दे दिया है...ये सोच पा रहे हैं आप???
एक और नाम ले लेता हूं...वो नाम है Deepika Singh Rajawat का...इस केस को बच्ची के परिवार की ओर से लड़ रही वकील दीपिका सिंह को वकीलों (गुंडा कहना चाहता था) के झुंड ने, बार काउंसिल की शह पर कोर्ट परिसर में धमकी दे कर, इस मामले से दूर रहने को कहा...जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट को, पुलिस को दीपिका को सुरक्षा देने को कहना पड़ा...जबकि दीपिका की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी तो ख़ुद बार काउंसिल को उठा लेनी चाहिए...लेकिन बार काउंसिल से एक वकील को ही ख़तरा हो गया है...
अब और ध्यान से पढ़िए...मृतक बच्ची का नाम आसिफ़ा था...वो घुमंतू चरवाहे समाज बक्करवाला से है...जांच कर के चार्जशीट दाखिल करने वाले पुलिस अधिकारी का नाम रमेश कुमार जाल्ला है...जो कश्मीरी रैनावारी पंडित हैं...दीपिका सिंह राजावत उस बच्ची का केस लड़ने वाली वकील हैं...आप जब इस मामले को हिंदू बनाम मुस्लिम बनाते हैं...आप भूल जाते हैं, कि ठीक इसी वक्त कश्मीर में भी इस मामले को ठीक वैसे ही लिया जा सकता है...लेकिन कश्मीर में एक राजनैतिक पार्टी के लोगों के अलावा नागरिक, अभी भी शांति बनाए हुए हैं...जबकि कितना आसान था लोगों के लिए सड़क पर आ जाना...और आपके लिए एक और बैरियर खड़ा कर देना...
अंत में एक बात और जो मुझे सबसे ज़्यादा अहम लग रही है...8 साल की बच्ची के रेप-हत्या के आरोपियों को बचाने निकली ये भीड़, हाथ में तिरंगा थामे थी...और आप अगली बार जब कश्मीरियों को तिरंगे से प्रेम करने की नसीहत देने के लिए सोशल मीडिया पर कुछ लिख रहे हों...या तिरंगे से उनकी नफ़रत का प्रोपोगेंडा व्हॉट्सएप पर बांट रहे हों...तो इस तस्वीर, इस भीड़ और इनके हाथों में थमे तिरंगे को एक बार याद कर लीजिएगा...आप समझ पाएंगे कि झंडों से मोहब्बत की ज़रूरत किनको होती है...और झंडो से नफ़रत आखिर किसे और क्यों हो जाती है...

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