आ गए चुनाव !

देश के छः राज्यों में विधानसभा चुनावों की मार काट मची है ...... नेता टाइपलोग एक दूसरे को विशेषणों से नवाजने में लगे हुए हैं........ ऐसी की तैसी हो गई है पर हाँ एक आदमी की इज्ज़त और पूछ बढ़ गई है और वो है आम आदमी या जनता। क्या है कि आम आदमी को अब पता चला है कि वो ख़ास हो चला है.....अमा चुनाव आ गए हैं भाई !

अच्छा इधर पाँच सालों में तो इन देश के कर्णधारों ने जनता की हालत नगर निगम के डंपरों जैसी कर दी है.....जनता घिस घिस कर ऐसी गेंदहो गई है जिसे स्पिनर भी डालने से मना कर देगा और अब नेता जी हाथ जोड़ कर गली गली भटक रहे हैं कि....पर पब्लिक समझदार है कह रही है


तब जो किहिन थे अब वो ना कीजे

अबकी बरस तोहका वोट ना दीजे


अपना भी कुछ लिख रहा हूँ पर अभी पूरा नही हुआ है तो वो अगली पोस्ट में अभी महाकवि श्री श्री श्री अशोक चक्रधर की एक कविता पढ़वा देता हूँ, तो पढ़ें और गुनें



एक नन्हा मेमना और उसकी माँ बकरी,
जा रहे थे जंगल में राह थी संकरी।
अचानक सामने से आ गया एक शेर,
लेकिन अब तो हो चुकी थी बहुत देर।

भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।
उधर शेर के कदम धरती नापें,
इधर ये दोनों थर-थर कापें।
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
बकरी लगी जैसे-जैसे बच्चे को थामने।

छिटककर बोला बकरी का बच्चा
-शेर अंकल!क्या तुम हमें खा जाओगे एकदम कच्चा?
शेर मुस्कुराया,
उसने अपना भारी पंजा
मेमने के सिर पर फिराया।
बोला-हे बकरी - कुल गौरव,
आयुष्मान भव!
दीर्घायु भव! चिरायु भव!
कर कलरव! हो उत्सव!
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेर
उछलो, कूदो, नाचो और जियो हँसते-हँसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!
इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,
बकरी हैरान-
बेटा ताज्जुब है,
भला ये शेर किसी पर रहम खानेवाला है,
लगता है जंगल में चुनाव आनेवाला है।

अशोक चक्रधर

मज़ा आया ना पढ़कर (वैसे देश भी धीरे धीरे जंगल होता जा रहा है, जंगली जो राज कर रहे हैं) ...... अगली पोस्ट का इंतज़ार करें पर हाँ वोट डालने जरूर जायें.....ये आपका अधिकार और कर्तव्य दोनों है !

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