जाने दो !
अभी अभी न्यूज़ रूम से उठा हूँ ......जिस तरह के विसुअल्स पिछले तीन दिनों से आने वाली फीड में देख रहा हूँ, वे लगातार दिमाग में घूम रहे हैं और फिर दिमाग घूम रहा है। कुछ समझ नहीं आ रहा है.....आज जब शहीद संदीप उन्नीकृष्णन की माँ को उसके शव से लिपट कर रोते देखा तो जैसे उठ कर टेलिविज़न पटक देने का मन हुआ। पर क्या क्या पटक सकते हैं.....अखबार, टेलिविज़न और रेडियो ? कब आख़िर अपने अन्दर के कायर को उठा कर पटक पाएंगे ....? कब पटखनी दे पाएंगे जाने दो वाली अपनी मानसिकता को ?
अब तो डर भी नही लगता कि सुरक्षित नहीं हैं हम लोग ..... बस लगता है कि .......................
शायद आज रात कोई अच्छी कविता लिख पाऊं ...... फिलहाल जो पाच नहीं पा रहा वह उलट देता हूँ
जाने दोएक रात फिर
गूंजा आसमान
चली गोलियाँ
मरे इंसान
हमने फिर कहा
जाने दो
कई मरे, शायद सौ या फिर दो सौ
या पता नहीं
बहा खून या बहे आंसू
पता नहीं
शहर के लोग
चिपके थे टेलिविज़न से
देख रहे थे
सीधे मुंबई से
एक मैच का
लाइव टेलीकास्ट
एक मैच
जिसमे थी दो टीमें
एक के हाथ हथियार
एक के हाथ
अपनी जिंदगियां
दोनों भाग रहे थे
एक हाथ में मौत लेकर
उसे बांटते हुए
एक हाथ में लेकर ज़िन्दगी
उसे बचाते
हाँफते हुए
हम जो घर पर
देखते थे यह खेल
सीधा प्रसारण
निकले नहीं बाहर
भय के कारण
पर हमारे हाथ में भी
था कुछ
जिसे हम भी संभाले थे
एक हाथ में रिमोट
और दूसरे में पोपकोर्न
और फिर अगले दिन सुबह
जब निकले हम घर से
और कहा किसी ने
चलो कर आयें रक्तदान
तो अजीब सा मुंह बनाकर
कहा हमने
अभी कुछ काम है
निपटाने दो
और मन में सोचा
जाने दो !
मुझे पूछना है उन लोगों से जो हेमंत करकरे को झूठा, राष्ट्रद्रोही और बेईमान जाने क्या क्या कह रहे थे......वो चुप क्यूँ हो गए हैं ? अगर अपनी बात पर कायम हैं और तब राजनीति नहीं कर रहे थे तो सामने आकर बोलें और अगर अपनी गलती मानते हैं तो कम से कम सामने आकर दो आंसू ही बहा दें !
उनसे भी सवाल है कि जो तीन दिन पहले कह रहे थे कि आतंकवाद का कोई धर्म नही होता है ....फिर क्यों बार बार इस्लामी आतंकवाद चिल्ला रहे हैं ? क्या आप लोगों ने कोई शपथ ली है कि मुल्क में मज़हबी भाईचारा बिगाड़ कर ही दम लेंगे ? क्या प्यार से रहते पड़ोसी आपको बर्दाश्त नहीं ?
आप से एक विनती है कि आप लोग ख़ुद तो कुछ कर नहीं सकते है मुल्क के लिए तो कम से कम माहौल ना बिगाडिये ...... एक आम हिन्दुस्तानी अभी इतना सक्षम स्वयं है कि अपने आस पास का माहौल ठीक रख सके !
बाकी राज ठाकरे, तोगडिया और अमर सिंह जैसों पर कोई टिपण्णी नही क्यूंकि यह इतनी योग्यता ही नहीं रखते !
अंत में एक दोहा,
फटे बम और लोग मरे, मुंबई में अँधेरा घुप्प
अमर सिंह जी गायब हैं और राज ठाकरे चुप्प
मुल्क का माहौल तो १९४७ में ही बिगड चुका है। उसके बाद भी जब इस देशवासियों को चैन से नहीं देने की कसम खा रखी है तो लोग चुप नहीं रहेंगे। आप का दिल आज रो रहा है पर यह तो १९४७ से चला आ रहा है कि अपने वतन के लोग अपने ही वतन में विस्थापितों का जीवन गुज़ार रहे हैं। आप ने कितने आंसू बहाए इन पर?
जवाब देंहटाएंshaidon ko naman
जवाब देंहटाएंइस दुखद और घुटन भरी घड़ी में क्या कहा जाये या किया जाये - मात्र एक घुटन भरे समुदाय का एक इजाफा बने पात्र की भूमिका निभाने के.
जवाब देंहटाएंकैसे हैं हम??
बस एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खुद के सामने ही लगा लेता हूँ मैं!!!
hum zinda jaroor hai par mare huey se badtar haal main..
जवाब देंहटाएंक्षमा करना मेरे पूर्वजों, मैं हिजड़ा बन गया हूँ!