मैं जानता था !
हिमांशु बार बार कहता रहता है....( अमां यार वाला हिमांशु ) की भइया आप अब गीत नहीं लिखते....आपसे गीत की अपेक्षा है, ये छंदमुक्त कविता यो हर ऐरा गैर लिखने लगा है ! तब मेरा उत्तर प्रायः यह होता है की लिखने की परिस्थितियाँ होती हैं और देश और दुनिया की वर्तमान हालत ऐसी नहीं कि प्रेमगीत लिखे जाएँ.....पर इस बात पर इधर वह कुछ ज्यादा ही खिन्न है सो आज एक पुरानी डायरी खोली और एक पुराना गीत दिखा जो संभवतः ग्रजुअशन के विश्वविद्यालय वाले वक्त में लिखा गया था.....हिमांशु यह तुम्हारे लिए .... नया गीत लिखने की इजाज़त मुल्क के हालत और दिल नहीं देता ....जल्द ही लिखूंगा पर अभी ये ही पढ़ कर संतोष करो ! यह गीत आम गीतों से कुछ भिन्न मातृ वाला है ...पढो प्रयोग था
मैं जानता था !
हाथ झटक कर छुडा के दामन तुम जाओगे एक दिन
मैं जानता था
मेरी आंखों की अंजुली में जल आंसू का भर जाओगे एक दिन
मैं जानता था
मैं अक्सर सोचा करता था
क्या तुम बिन भी रहना होगा ?
जीवन के प्रवाह को क्या
एकाकी बहना होगा ?
क्या कोई पल ऐसा होगा ?
क्या कोई तुम जैसा होगा ?
पलकों पर बूंदों की झिलमिल झिलमिल झालर सजवाओगे एक दिन
हाथ झटक कर छुडा के दामन तुम जाओगे एक दिन
मैं जानता था
मैंने जब भी तुमको देखा
सदा नया सा तुमको पाया
आख़िर यह बतलाओ कहाँ से
रूप सलोना तुमने पाया ?
कहाँ से सीखा फूलों जैसा
खिल खिल जाना
और काँटों से भी मुस्का कर
घुल मिल जाना
मेरे मन के भी काँटों से क्या तुम बोलो मिल पाओगे एक दिन
हाथ झटक कर छुडा के दामन तुम जाओगे एक दिन
मैं जानता था
जब जब तुम नाराज़ हुए थे
तुम्हे मनाया
तुमको देखा, ख़ुद को खोया
तुमको पाया
हर रोज़ सुबह उठ कर
क्यों तेरा नाम लिया था
हर रात सपन में
बस तेरे ही साथ जिया था
क्या फिर लौट के इन सपनों में तुम आओगे एक दिन
हाथ झटक कर छुड़ा के दामन तुम जाओगे एक दिन
मैं जानता था
मैं जानता था और फिर भी
मैं जान न सका
सत्य विराट था
पर पहचान न सका
अब दिल में गुबार
आँखों में पानी है
शायद यही
हां यही ज़िन्दगानी है
और आखिरी एक प्रश्न है ईश्वर से अब
क्या तुम मुझको मेरे मन से मिलवाओगे एक दिन
हाथ झटक कर...........................
आखिरी में बशीर बद्र के चाँद आशार इसे नजर करता हूँ ...
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे
मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे
भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब समझते होंगे
( यह कविता २५ फरवरी २००६ को लिखी गई थी.....लिखने के कारणों पर चर्चा ना ही हो अच्छा है.....जब वक़्त के साथ जवानी के शुरूआती दिनों के ज़ख्म भर जाएँ तो उन्हें ना ही कुरेदना अच्छा है.....)
मैं जानता था !
हाथ झटक कर छुडा के दामन तुम जाओगे एक दिन
मैं जानता था
मेरी आंखों की अंजुली में जल आंसू का भर जाओगे एक दिन
मैं जानता था
मैं अक्सर सोचा करता था
क्या तुम बिन भी रहना होगा ?
जीवन के प्रवाह को क्या
एकाकी बहना होगा ?
क्या कोई पल ऐसा होगा ?
क्या कोई तुम जैसा होगा ?
पलकों पर बूंदों की झिलमिल झिलमिल झालर सजवाओगे एक दिन
हाथ झटक कर छुडा के दामन तुम जाओगे एक दिन
मैं जानता था
मैंने जब भी तुमको देखा
सदा नया सा तुमको पाया
आख़िर यह बतलाओ कहाँ से
रूप सलोना तुमने पाया ?
कहाँ से सीखा फूलों जैसा
खिल खिल जाना
और काँटों से भी मुस्का कर
घुल मिल जाना
मेरे मन के भी काँटों से क्या तुम बोलो मिल पाओगे एक दिन
हाथ झटक कर छुडा के दामन तुम जाओगे एक दिन
मैं जानता था
जब जब तुम नाराज़ हुए थे
तुम्हे मनाया
तुमको देखा, ख़ुद को खोया
तुमको पाया
हर रोज़ सुबह उठ कर
क्यों तेरा नाम लिया था
हर रात सपन में
बस तेरे ही साथ जिया था
क्या फिर लौट के इन सपनों में तुम आओगे एक दिन
हाथ झटक कर छुड़ा के दामन तुम जाओगे एक दिन
मैं जानता था
मैं जानता था और फिर भी
मैं जान न सका
सत्य विराट था
पर पहचान न सका
अब दिल में गुबार
आँखों में पानी है
शायद यही
हां यही ज़िन्दगानी है
और आखिरी एक प्रश्न है ईश्वर से अब
क्या तुम मुझको मेरे मन से मिलवाओगे एक दिन
हाथ झटक कर...........................
आखिरी में बशीर बद्र के चाँद आशार इसे नजर करता हूँ ...
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे
मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे
भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब समझते होंगे
( यह कविता २५ फरवरी २००६ को लिखी गई थी.....लिखने के कारणों पर चर्चा ना ही हो अच्छा है.....जब वक़्त के साथ जवानी के शुरूआती दिनों के ज़ख्म भर जाएँ तो उन्हें ना ही कुरेदना अच्छा है.....)
लिखते रहें भाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है यह
जवाब देंहटाएंiski baat hi alag hai.................bhale hi aaj ka mahaul geet ke liye makool na ho lekin chand baddh kavita ya nazm bhi to likhi ja sakti hai,,,,,,,,, thoonth bhi pesh karein ...........
जवाब देंहटाएंसूखने के बाद ज़ख्मों का ये फिलहाल था
जवाब देंहटाएंसोचिये शबाब पर थे ,तो क्या हाल था
सुभान अल्लाह
अच्छी रचना लिखी है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता, सच
जवाब देंहटाएं-------------------------
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