याद रहा क्रिसमस, बधाई मिली वाजपयी को...भूले महामना को ?

२५ दिसम्बर, साल की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तारीखों में से एक ! एक ओर ईसा के अवतरण की कहानी की परम्परा ....... बड़ा दिन और सैंटा क्लॉस की किवदंतियों को जीवित कर देने का दिन....दिन याद करने का उस इंसान को जिसने दुनिया को शायद पहली बार अहिंसा का पाठ पढाया ( यह अलग बात है कि उसके अनुयायी ही उसे भूल गए)। पहले ताज़ा हवा की ओर से सबको बड़े दिन की शुभकामनायें।
इस दिन की एक ख़ास बात और......शायद एक यह बात भी है जो इसे और उल्लासपूर्ण बनाती है कि ठीक एक हफ्ते बाद ही रोमन संवत का नया साल शुरू हो जाता है.....तो इस दिन में एक रोमांच भी शामिल है। आज ही के दिन देश के सम्मानित नेता और पूर्व प्रधानमन्त्री अटल जी का भी जन्मदिन है। अटल जी एक उम्दा कवि भी हैं और ओजस्वी वक्ता भी.....
आज के दिन कई टीवी, अखबार और ब्लॉग लेखों में क्रिसमस और अटल जी के बारे में पढ़ा पर एक कमी खली सो उसको शरीके ज़िक्र करूंगा और याद भी दिलाना चाहूँगा...( हो सकता है कुछ ब्लोगरों ने चर्चा की हो ....पर अखबार और टीवी तो खैर अब नाउम्मीद ही करते हैं) आज प्रसिद्द स्वतंत्रता आंदोलनकारी, विद्वान्, पत्रकार और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक आचार्य महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की भी जयंती है और बनारस के अखबारों को छोड़कर किसी ने इसकी चर्चा भी की हो।
महामना मालवीय के बारे में क्या बात की जाए ..... जन्म हुआ २५ दिसम्बर १८६१ को इलाहाबाद में ....एक विद्वान के तौर पर ख्याति अर्जित की, पत्रकार के तौर पर दो अखबार हिंदुस्तान (हिन्दी) और द इंडियन यूनियन (अंग्रेज़ी) में स्थापित किए। १९०९ और १९१८ में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। पर सबसे बड़ा उपकार जो पंडित जी ने भारतीय लोगों पर किया वह यह था कि उन्होंने एक ऐसे संस्थान की नींव डाली जो न केवल भारत अपितु विश्व में अतुलनीय है....और श्रेष्ठता के झंडे गाड रहा है।
१९१६ में स्थापित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एशिया का सबसे बड़ा शिक्षण संस्थान है। इसमे कोई १२८ शिक्षण विभाग हैं, १५००० से ऊपर शिक्षार्थी, जिसमे तकनीकी संस्थान और चिकित्सा संस्थान दुनिया में सबसे अच्छों में से हैं। यहाँ के विज्ञान संकाय को एशिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
यही नहीं १९३१ में हुई गोलमेज वार्ता में भी महामना, गांधी जी के साथ शामिल हुए। सबसे बड़ी बात यह थी कि देश के सबसे बड़े औद्योगिक घरानों से लेकर आम आदमी तक उनकी एक ही छवि रही। सब उनके साथ थे।
बुरा यह नहीं लगा कि लोग महामना को भूल गए, बुरा यह लगा कि जिनको याद रखना चाहिए वे भूल गए। हम में से कई पत्रकार और लेखक उसी काशी विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले हैं और दुनिया भर पर अपने बी एच यु अलुमनी होने का रॉब झाड़ते रहते हैं और हम ही उस दिन को भूल गए ?
देश के वे नेता भूल गए जो संसद में अपने अपने वोट बैंक के हिसाब से महापुरुषों की तसवीरें लगवाने के लिए चीखा करते हैं......और हम सब भूल गए जो नेताओं पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाते हैं !
क्या ऐसे में पाठ्य पुस्तकों में इन महापुरुषों के बारे में पढाये जाने का कोई औचित्य है जब हम इन्हे केवल परीक्षा पास करने की मजबूरी मानते हों ?
खैर चलिए अभी ऐसा वक्त नहीं आया कि हम क्रिसमस भूल जाते....पर क्या क्रिसमस पर वाकई हम ईसा या उनके उपदेशों को याद करते हैं .....या केवल पार्टी करते हैं....कहीं ऐसा तो नहीं कि अगर बाज़ार ना याद दिलाये तो हम इसे भी भूल जायेंगे ?
सोचिये क्या ऐसा तो नहीं कि बाज़ार हमें वही चीज़ें याद रखने पर मजबूर कर रहा है जिनमे उसका फायदा है ?
फिलहाल इजाज़त .....बड़े दिन की बधाई.....अटल जी को उनके जन्मदिन की शुभकामनाएं.....महामना को खैर जाने ही दीजिये अंत में अटल जी की ही एक कविता पढ़ डालते हैं,

धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,

किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।

न वसंत हो, न पतझड़ हो
सिर्फ ऊँचाई का अंधड़ हो ,
मात्र अकेलापन का सन्नाटा।

मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।

टिप्पणियाँ

  1. मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
    ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
    इतनी रुखाई कभी मत देना।

    bahut khoob aur us mahan hasti ko mera sadar naman.....
    aur apko dhanyavaad

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  2. याद है भाई साहब, मालवीय जी को उनके लाखो-लाख बेटे कैसे भूल सकते है, हां बस यह है की हम शोर नही मचाते. टीवी और अख़बार वालो के बारे में क्या बोलना? वो उनको ना याद करे तो बेहतर है, नही तो उनको भी सांप्रदायिक बोल देंगे. वैसे बड़े संजोग की बात है अभी कल ही ३ साल पुरानी एक किताब पढ़ना ख़त्म किया है पता नही आप ने पढ़ा है की नही, अगर नही पढ़ा हो तो टाइम निकल के पढ़े, किताब का नाम है " A Hindu education-Early years of the Banaras Hindu University" by Leah Renold. Oxford University press.

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  3. maalwiya ji ko jo bhool gaye honge unhe atal ji aur yishu ka janm bhi shayad hi yaad ho ........ heading kuch khas mujhe bhi nahi lagi lekin post aur aapka andaaz bejod hai ......... shukriya saxena ji

    pravin kumar ji se bas itna hi kehna hai ki janab media waale kisi ke saampradaaik hone ka faisala nahi karte....... ye dangon mein maare gaye insaanon ki laashon ki zubaan se nikali kahani hai ............

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  4. किसी ने याद न किया हो आपने तो किया न...आचार्य महामना पंडित मदन मोहन मालवीय को याद करने के लिए आपको बहुत बहुत धन्‍यवाद।

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  5. झकझोरने जैसा याद दिलाती है आपकी पोस्ट.
    ये बात बिल्कुल सही है.देश का जितना भला मालवीय जी ने किया शायद ही कोई और मिसाल है .
    महामना मदनमोहन मालवीय को कोटि कोटि नमन .

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