भूल गए हैप्पी बड्डे !
कल १६ दिसम्बर था और था विजय दिवस। विजय आज यानी कि कल के दिन ही १९७१ में भारतीय सेना के रणबांकुरों ने पाकिस्तानी सेना के ९०,००० सिपाहियों को आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया था और आज हम उसी पाकिस्तान के छद्म युद्ध का सामना कर रहे हैं। इस विजय दिवस पर मैंने पिछले वर्ष १६ दिसम्बर को भी एक पोस्ट लिखी थी और अचानक विजय दिवस के बहाने याद आया कि अरे ताज़ा हवा को एक साल हो गया और यह सालगिरह बिना किसी हो हल्ले के निकल गई...........क्या यार.....इतनी लापरवाही !
खैर अब भूल गए सो भूल गए पर अब याद आ गया है तो बताये देते हैं कि भइया अपने ब्लॉग को एक साल पूरा हो गया है और दिसम्बर की १४ तारीख को आपका ब्लॉगशिशु ताज़ा हवा एक साल का हो गया है। आज याद आ रहा है वो एक एक लम्हा जब यह शिशु पल बढ़ रहा था.....जब यह जन्मा ...... जब इसे आप सब बडो ने पुचकारा, गोद में खिलाया ..... माता गूगल और पिता मयंक सक्सेना की इस संतान ने मुझे बिना विवाह के पिता बनने का जो गौरव प्रदान किया है उसकी समता तो केवल स्वर्गीय अभिनेता महमूद ही कर सकते थे....( महमूद ने एक फ़िल्म में यही किरदार निभाया था )....
फिलहाल बैठा हूँ और गुजरा वक्त जैसे आंखों के सामने बाइस्कोप जैसा चल रहा है....जब यह शिशु पहली बार हिन्दी ब्लोगिंग परिवार की गोद में सौंपा गया, तब किस तरह आप सब ने इसे परिवार के अलग अलग सदस्यों की तरह प्यार दुलार दिया। इन सब में से कोई इस शिशु का भाई बना, कोई चाचा, कोई ताऊ, कोई दादा- दादी और उम्मीद है कि जल्द ही कोई पहली प्रेयसी भी मिल ही जायेगी ........
जब ताज़ा हवा शुरू हुआ तो शायद यह मालूम भी नही था कि ब्लोगवाणी, चिट्ठाचर्चा या हिन्दी ब्लोग्स जैसा कोई एग्रीगेटर होता है जहाँ दुनिया को आपके ब्लॉग का पता चले....सो कुछ अपने यार-दोस्त ही इसे पढा करते थे....पहली पोस्ट जिसे सम्पादकनामा के नाम से प्रस्तुत किया था उसमे कई बड़ी बड़ी बातें थी जिसमे इसे एक बड़ा सामूहिक ब्लॉग बनाने के विचार थे पर खैर उनकी जाने दें ( वैसे भी एक उस विचार को छोड़ कर बाकी कोई भी विचार अभी तक तो फ्लॉप हुआ नहीं दिखता) ..... पहली पोस्ट पर केवल कुछ मित्रों की प्रतिक्रियाएं थी, उनका मज़ा लें;
गुंजन सक्सेना ने इरादों पर ही प्रश्नचिन्ह लगा डाला, वे बोले....
"हवाएं कब से चलना स्टार्ट होंगी?... गुंजन"
मनीष ने थोडी दिलासा दी पर व्यंग्य कर ही डाला,
"havaa acchi chal rahi hai lekin thodi dhimi है"
जैसे यह थोड़ा था कुमार अजीत ने चुनौती ही दे डाली, वे कहते हैं...
"मयंक भाई, ताज़ा हवा ब्लाग सम्बन्धित आपके इरादों पर भी चलती रहे....आपका अजीत"
ऐसी हालत में जब ब्लॉग का बुखार चढ़ते ही उतरने लगा था (हालांकि इनमे से सबकी मंशा अच्छी ही थी ) दो टिप्पणियां ऐसी आई जिन्होंने हौसला बाँध दिया.......
देविका ने बड़ी प्रेरक बात लिखी,
"hawaon ka irada, hausla e bandi ka hai। par sirf hawa ban k mat ho rawan, balki us toofan ka manzar bana, ki galat soch tujh se dare aur kamzor tera daman thaame।umeed hai ki yeh apne naam aur kaam ko zimmedari se nibhaye."
रोहिणी ने भी हौसला बढाया, कहा...
"posts n updates dekh kar lag raha hai k blog 'taaza hawa' apne naam ko saarthak kar raha hai.. sampaadak ko badhaai,शुभकामनाएं"
समस्या उस समय यह थी कि न तो हिन्दी टंकण के अधिक टूल उपलब्ध थे और न ही उपलब्ध टूल्स के बारे में आम इंटरनेट यूज़र को ज़्यादा जानकारी...इसलिए हमारे टिप्पणीकारों की अधिकतर टिप्पणियां रोमन में ही होती थी.... खैर इसके बाद ब्लॉग पर उम्मीद है कि, १६ दिसम्बर, ज़रा याद करो कुर्बानी, आवाज़ ऐ खल्क ( यह हरीश बरौनिया ने लिखा था), मोदी का रहस्य, सचिन का भाग्य जागा और मीडिया के अकाल पर एक भी टिप्पणी नहीं आई और हौसला हिचकोले खाने लगा........तब अहसास हुआ कि TRP या BRP की क्या अहमियत है और फटाफट एक साभार लेख चिपका दिया....मौसम के अनुकूल......रवीश कुमार का मफ़लर ..... खैर तरक़ीब ज़्यादा काम तो नहीं आई पर एक टिप्पणी आ गई....
नितिन ने रवीश जी के लिए संदेश लिखा...,
"रवीश जी अब तक मफलर बांधता था आज पढ़ भी लिया, शुक्रिया !"
(रवीश जी का मैं भी आभारी हूँ की उन्होंने सदैव अपने लेखों को मुझे साभार प्रकाशित करने की अनुमति दी है....)
इसके बाद पढ़ाई पूरी होने वाली थी और एक एक कर के सारे साथी या तो इन्टर्न शिप या फिर नौकरी के लिए साथ छोड़ रहे थे.....माहौल इमोशनल था और फिर लिख डाली पंछी .....
यह वह समय था जब के जद्दोजहद शुरू हो गई थी .... मेरी प्रोफाइल लिखा था कि "अक्सर बेकार रहता हूँ इसलिए ब्लॉग लिखता हूँ...." इसके बाद २६ जनवरी को काका हाथरसी की एक कविता ठेली और रवीश जी ने एक कमेन्ट दिया जो ताज़ा हवा पर किसी बाहरी ब्लागर का पहला आवागमन था,
"मयंक जी पढ़ लिया आपका ब्लाग। २६ जनवरी के दिन ही। और कविता भी २६ जनवरी पर। अच्छा है।
बेकारी में ही तो रास्ता निकलता है। जब भी हम बेकार होते हैं तभी नया सोचते हैं। इसलिए ब्लाग बनाने की बधाई। लिखते रहिए।"
रवीश जी की टिपण्णी मेरे ब्लॉग जीवन के लिए शायद उस समय बहुत बड़ी उपलब्धि थी, शायद तब भान भी ना था कि अभी तो ब्लोगिंग के और भी महारथी हैं.....इसके बाद गांधी जी की पुन्य तिथि पर एक कविता डाली जिस पर पणजी से यती ने टिप्पणी की,
"is kavita k baremai likh ne k liye shabda nai hai bas itna hi kahungi aachi hai"
खैर कारवाँ चल तो चुका ही था .....इसके बाद विज़न 202०, सपने बीनने वाला, यह ज़मीं हमारी नहीं (परम मित्र स्वप्रेम की) आदि रचनाएं आईं और सराही गईं। इसके बाद जलियांवाला बाग की बरसी पर हमने बात की कि क्या वाकई हम अपने शहीदों को भूलने लगे है.....अप्रैल वह समय था जब मैं एक अदद नौकरी के लिए मीडिया जगत में संघर्ष कर रहा था और इस महीने केवल एक पोस्ट आई। मई में ४ पोस्ट लिखी पर टिप्पणी शून्य रही.....एक तो सामने रोजगार की तलाश .... एक भी टिप्पणी न देख कर रहा सहा आत्मविश्वास भी जाता रहा, सोचा अब कोई ब्लाग व्लाग नहीं लिखना और नतीजतन जून में शर्मनाक तरीके से एक भी पोस्ट नहीं रही और मामला सन्नाटा !
पर वाकई यह बदलाव का समय निकला और २१ जुलाई को देश के एक प्रतिष्ठित और सबसे पुराने न्यूज़ चैनल में नौकरी लग गई। फिर क्या था.....निकल पड़ी और ब्लोगिंग फिर शुरू.....अगले ही दिन अपने मुल्क के महान नेताओं की बदौलत अगली पोस्ट आ गई, शीर्षक था सत्ता के सौदागर या पोलिटिकल मैनेजर्स .......... अगली पोस्ट थी राही मासूम रज़ा की कविता गंगा और महादेव ...इसके बाद बंगुलुरु और अहमदाबाद में लगातार धमाके हुए और टीवी समाचार चैनलों के न्यूज़रुम के माहौल पर कुछ आहें निकल पड़ी खून के आंसू और आंसुओ का खून ! इस पर संजय तिवारी जी ने कहा,
"गहरी संवेदनाएं हैं. इसको ही अपने काम में उतारिए. बहुत कुछ बदलेगा."
इसके बाद 31 जुलाई को हिमांशु ने प्रेमचंद की जयंती और रफ़ी की पुण्यतिथि पर एक रचना भेजी प्रेमचंद और रफी ......इसके बाद अगस्त की पहली पोस्ट थी हरकिशन सिंह सुरजीत के अवसान से जुड़ी जिसमें मेरा व्यक्तिगत संस्मरण भी जुड़ा था युगांत ...... । इसके बाद आई ११ अगस्त और लाई ओलम्पिक में अभिनव बिंद्रा के स्वर्ण पदक जीतने की ख़बर....ताज़ा हवा ने कहा बिंद्रा.....सलाम ! इस पर शोभा महेन्द्रू ने कहा,
"आप आशावादी रहें। भारत और भी पदक जीतेगा। जीत की बहुत- बहुत बधाई"
भविष्यवाणी सच निकली !!
१५ अगस्त आई और हमने कहा हुआ जनतंत्र का जन्म ! उड़नतश्तरी सरसराई, "स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं।" इसके बाद जन्माष्टमी पर याद दिलाई कृष्ण भक्त रसखान। ... की, इसके बाद आखिरी कलाम.....सलाम में ताज़ा हवा ने दी अहमद फ़राज़ साहब को श्रद्धांजलि। १ सितम्बर को दुष्यंत के जन्मदिन पर उन्हें याद किया हिमांशु ने और समझाए दुष्यंत के मायने .... और क्रांतिकारी कवि वेणुगोपाल के अवसान पर किया उनको याद...क्रन्तिकारी का अवसान .... शिक्षक दिवस पर गुरुजनों को याद किया राधाकृष्णन, कबीर, तुम्हारे या फिर अपने बहाने ...? इसके बाद उठाई हमने आवाज़ .....
समीरलाल जी ने कही "सच में सबकी बात है। बहुत उम्दा रचना!!!"
Shastri बोले, "हम तो जोर से चिल्लायेंगे !!"
और हिंदी दिवस पर प्रसून जोशी से साभार कहलवाया हिंदी को आजादी चाहिए !
इसके बाद दिल्ली में धमाके हो गए और फिर आए मकडियां , बीच की दीवार और आतंक का फिर हमला ......२८ और 29 सितम्बर को हमने याद किया भगत सिंह को उनकी माँ की अपील .... और उनकी चिट्ठियों के ज़रिए ! अदम गोंडवी की ग़ज़ल पर डॉ .अनुराग ने कहा,
"ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
बस एक शेर में सारी बात कह दी..."
हालांकि कई बातें कहनी बाकी थी सो आगाज़ हुआ एक नए ब्लागर का और उन्होने कहा इक शमा और जला लूँ ......इसके बाद नन्ही पुजारन से परिचय हुआ और समझा बाढ़ और अकाल को तभी आया करवाचौथ और हमने कहा आज फिर ..... इस पर दिनेशराय द्विवेदी जी ने पूछा,
"कविता सुंदर है। लेकिन क्या आप इस परंम्परा को अपनी बेटी तक चलाने का इरादा रखते हैं।"
इसके बाद हमने बात कही जो राही मासूम ने कही थी लेकिन मेरा लावारिस दिल ,इस पर Suresh Chandra Gupta जी ने फ़रमाया,
मन्दिर बनाया आपने,
मस्जिद बनाई आपने,
दिल बनाया जिस ने,
निकाल दिया उसे दिल से,
फ़िर दिल लावारिस तो होना ही था।
उसके बाद चुनाव आए और बाल दिवस भी....चुनावी ग़ज़ल भी आई और वरुण कुमार सखाजी की टिप्पणी भी कि,
अच्छा लिखते हो ग़ज़ल-ए-बयां पसंद आया पहली बार इस ब्लॉग पर आया हूँ। वधाई हो इस हक़ीक़त को जानते तो सभी हैं,मग़र कौन बनेगा दर्द की दवा,ज़ख़्म का मलहम। तेजस्वी ओजस्वी लोग मीडिया की शरण में हैं जो उद्योगपतियों की कठपुतली हैं आखिर क्यों ये तथाकथित क्रांतीवीर राजनीति नहीं ज्वाइन करते। मयंक जी से उम्मीदें बहुत हैं।
ज्ञानपीठ मिलने के बाद भाषा की ध्वस्त पारिस्थितिकी में अडिग कुंवर नारायण को भी याद किया और महिला दिवस पर जनानो की मर्दानगी को भी......यह सब चलता रहता पर तभी मुम्बई ने पूरी दुनिया को हिला दिया.....हम क्या अलग थे ? बहुत कोशिश की कहने की जाने दो ! पर दिल उबल पड़ा कि क्या वाकई हम इसी मीडिया के हिस्से हैं ..... निकल पड़ी कुछ नज्में...दिल की बातें हैं..... और मानवाधिकार दिवस पर याद किया कि क्या ज़रूरी हैं .........................
और देखते ही देखते यह शिशु एक वर्ष का हो गया......यकीन तो वाकई नहीं होता पर सच है......अब तक वही कहा और लिखा जो ठीक लगा
न भाषा भाव शैली है, न कविता सारगर्भित है
ह्रदय का भाव सुमन है, ह्रदय से ही समर्पित है
पर अब शिशु और उसका पिता आप सभी परिवारजनों को धन्यवाद देना चाहता है, हम दिल से आभारी हैं,
समीरलाल जी, कविता जी, शोभा जी, रवीश जी, यती, सुरेश जी, अनुपम जी, शास्त्री जी, महेन्द्र जी, संजय जी, अशोक जी, राकेश जी, रश्मि जी, नीरज जी, सुशील जी, हरि जी, संगीता जी, दिनेश राय द्विवेदी जी, निशू जी, योगेन्द्र जी, रंजना जी, तनु जी जिन सबने ताज़ा हवा के अभिभावकों की बख़ूबी भूमिका वहन की......इसके बाद शुक्रगुज़ार हूं अपने साथियों देविका, अजीत, नितिन, स्वप्रेम, वरुण, अनुभव जी, गुंजन, रोहिणी, मनीष और उन सभी का जो हम को पढ़ते हैं ....... या आगे पढ़ेंगे ....
अब कहो कि सालगिरह भूल गए तो यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं, अब हम लोग जब अपने शहीदों की जन्म तिथियाँ और पुण्य तिथियाँ भूल जाते हैं, हम सड़क पर पड़े घायल को भूल जाते हैं, हम कचरे में खाना ढूंढते बच्चों को भूल जाते हैं, हम रोज़ होने वाले आतंकी हमलों को भूल जाते हैं, हम अपने समाज और मुल्क के हित भूल जाते हैं, और तो और अक्सर हम अब इंसानियत भूल जाते हैं......फिर मैं तो अपने अदने से ब्लॉग की सालगिरह ही भूला था.....सो इस भूल को आप भूल जाओ और अब आगे ताज़ा हवा पर आने वाले और नियमित और बेहतर लेखों का मज़ा लें .....!
इस प्रण के साथ कि आगे से हम और नियमित और धुँआधार पोस्ट्स आपके लिए लायेंगे ......अभी के लिए विदा
खैर अब भूल गए सो भूल गए पर अब याद आ गया है तो बताये देते हैं कि भइया अपने ब्लॉग को एक साल पूरा हो गया है और दिसम्बर की १४ तारीख को आपका ब्लॉगशिशु ताज़ा हवा एक साल का हो गया है। आज याद आ रहा है वो एक एक लम्हा जब यह शिशु पल बढ़ रहा था.....जब यह जन्मा ...... जब इसे आप सब बडो ने पुचकारा, गोद में खिलाया ..... माता गूगल और पिता मयंक सक्सेना की इस संतान ने मुझे बिना विवाह के पिता बनने का जो गौरव प्रदान किया है उसकी समता तो केवल स्वर्गीय अभिनेता महमूद ही कर सकते थे....( महमूद ने एक फ़िल्म में यही किरदार निभाया था )....
फिलहाल बैठा हूँ और गुजरा वक्त जैसे आंखों के सामने बाइस्कोप जैसा चल रहा है....जब यह शिशु पहली बार हिन्दी ब्लोगिंग परिवार की गोद में सौंपा गया, तब किस तरह आप सब ने इसे परिवार के अलग अलग सदस्यों की तरह प्यार दुलार दिया। इन सब में से कोई इस शिशु का भाई बना, कोई चाचा, कोई ताऊ, कोई दादा- दादी और उम्मीद है कि जल्द ही कोई पहली प्रेयसी भी मिल ही जायेगी ........
जब ताज़ा हवा शुरू हुआ तो शायद यह मालूम भी नही था कि ब्लोगवाणी, चिट्ठाचर्चा या हिन्दी ब्लोग्स जैसा कोई एग्रीगेटर होता है जहाँ दुनिया को आपके ब्लॉग का पता चले....सो कुछ अपने यार-दोस्त ही इसे पढा करते थे....पहली पोस्ट जिसे सम्पादकनामा के नाम से प्रस्तुत किया था उसमे कई बड़ी बड़ी बातें थी जिसमे इसे एक बड़ा सामूहिक ब्लॉग बनाने के विचार थे पर खैर उनकी जाने दें ( वैसे भी एक उस विचार को छोड़ कर बाकी कोई भी विचार अभी तक तो फ्लॉप हुआ नहीं दिखता) ..... पहली पोस्ट पर केवल कुछ मित्रों की प्रतिक्रियाएं थी, उनका मज़ा लें;
गुंजन सक्सेना ने इरादों पर ही प्रश्नचिन्ह लगा डाला, वे बोले....
"हवाएं कब से चलना स्टार्ट होंगी?... गुंजन"
मनीष ने थोडी दिलासा दी पर व्यंग्य कर ही डाला,
"havaa acchi chal rahi hai lekin thodi dhimi है"
जैसे यह थोड़ा था कुमार अजीत ने चुनौती ही दे डाली, वे कहते हैं...
"मयंक भाई, ताज़ा हवा ब्लाग सम्बन्धित आपके इरादों पर भी चलती रहे....आपका अजीत"
ऐसी हालत में जब ब्लॉग का बुखार चढ़ते ही उतरने लगा था (हालांकि इनमे से सबकी मंशा अच्छी ही थी ) दो टिप्पणियां ऐसी आई जिन्होंने हौसला बाँध दिया.......
देविका ने बड़ी प्रेरक बात लिखी,
"hawaon ka irada, hausla e bandi ka hai। par sirf hawa ban k mat ho rawan, balki us toofan ka manzar bana, ki galat soch tujh se dare aur kamzor tera daman thaame।umeed hai ki yeh apne naam aur kaam ko zimmedari se nibhaye."
रोहिणी ने भी हौसला बढाया, कहा...
"posts n updates dekh kar lag raha hai k blog 'taaza hawa' apne naam ko saarthak kar raha hai.. sampaadak ko badhaai,शुभकामनाएं"
समस्या उस समय यह थी कि न तो हिन्दी टंकण के अधिक टूल उपलब्ध थे और न ही उपलब्ध टूल्स के बारे में आम इंटरनेट यूज़र को ज़्यादा जानकारी...इसलिए हमारे टिप्पणीकारों की अधिकतर टिप्पणियां रोमन में ही होती थी.... खैर इसके बाद ब्लॉग पर उम्मीद है कि, १६ दिसम्बर, ज़रा याद करो कुर्बानी, आवाज़ ऐ खल्क ( यह हरीश बरौनिया ने लिखा था), मोदी का रहस्य, सचिन का भाग्य जागा और मीडिया के अकाल पर एक भी टिप्पणी नहीं आई और हौसला हिचकोले खाने लगा........तब अहसास हुआ कि TRP या BRP की क्या अहमियत है और फटाफट एक साभार लेख चिपका दिया....मौसम के अनुकूल......रवीश कुमार का मफ़लर ..... खैर तरक़ीब ज़्यादा काम तो नहीं आई पर एक टिप्पणी आ गई....
नितिन ने रवीश जी के लिए संदेश लिखा...,
"रवीश जी अब तक मफलर बांधता था आज पढ़ भी लिया, शुक्रिया !"
(रवीश जी का मैं भी आभारी हूँ की उन्होंने सदैव अपने लेखों को मुझे साभार प्रकाशित करने की अनुमति दी है....)
इसके बाद पढ़ाई पूरी होने वाली थी और एक एक कर के सारे साथी या तो इन्टर्न शिप या फिर नौकरी के लिए साथ छोड़ रहे थे.....माहौल इमोशनल था और फिर लिख डाली पंछी .....
यह वह समय था जब के जद्दोजहद शुरू हो गई थी .... मेरी प्रोफाइल लिखा था कि "अक्सर बेकार रहता हूँ इसलिए ब्लॉग लिखता हूँ...." इसके बाद २६ जनवरी को काका हाथरसी की एक कविता ठेली और रवीश जी ने एक कमेन्ट दिया जो ताज़ा हवा पर किसी बाहरी ब्लागर का पहला आवागमन था,
"मयंक जी पढ़ लिया आपका ब्लाग। २६ जनवरी के दिन ही। और कविता भी २६ जनवरी पर। अच्छा है।
बेकारी में ही तो रास्ता निकलता है। जब भी हम बेकार होते हैं तभी नया सोचते हैं। इसलिए ब्लाग बनाने की बधाई। लिखते रहिए।"
रवीश जी की टिपण्णी मेरे ब्लॉग जीवन के लिए शायद उस समय बहुत बड़ी उपलब्धि थी, शायद तब भान भी ना था कि अभी तो ब्लोगिंग के और भी महारथी हैं.....इसके बाद गांधी जी की पुन्य तिथि पर एक कविता डाली जिस पर पणजी से यती ने टिप्पणी की,
"is kavita k baremai likh ne k liye shabda nai hai bas itna hi kahungi aachi hai"
खैर कारवाँ चल तो चुका ही था .....इसके बाद विज़न 202०, सपने बीनने वाला, यह ज़मीं हमारी नहीं (परम मित्र स्वप्रेम की) आदि रचनाएं आईं और सराही गईं। इसके बाद जलियांवाला बाग की बरसी पर हमने बात की कि क्या वाकई हम अपने शहीदों को भूलने लगे है.....अप्रैल वह समय था जब मैं एक अदद नौकरी के लिए मीडिया जगत में संघर्ष कर रहा था और इस महीने केवल एक पोस्ट आई। मई में ४ पोस्ट लिखी पर टिप्पणी शून्य रही.....एक तो सामने रोजगार की तलाश .... एक भी टिप्पणी न देख कर रहा सहा आत्मविश्वास भी जाता रहा, सोचा अब कोई ब्लाग व्लाग नहीं लिखना और नतीजतन जून में शर्मनाक तरीके से एक भी पोस्ट नहीं रही और मामला सन्नाटा !
पर वाकई यह बदलाव का समय निकला और २१ जुलाई को देश के एक प्रतिष्ठित और सबसे पुराने न्यूज़ चैनल में नौकरी लग गई। फिर क्या था.....निकल पड़ी और ब्लोगिंग फिर शुरू.....अगले ही दिन अपने मुल्क के महान नेताओं की बदौलत अगली पोस्ट आ गई, शीर्षक था सत्ता के सौदागर या पोलिटिकल मैनेजर्स .......... अगली पोस्ट थी राही मासूम रज़ा की कविता गंगा और महादेव ...इसके बाद बंगुलुरु और अहमदाबाद में लगातार धमाके हुए और टीवी समाचार चैनलों के न्यूज़रुम के माहौल पर कुछ आहें निकल पड़ी खून के आंसू और आंसुओ का खून ! इस पर संजय तिवारी जी ने कहा,
"गहरी संवेदनाएं हैं. इसको ही अपने काम में उतारिए. बहुत कुछ बदलेगा."
इसके बाद 31 जुलाई को हिमांशु ने प्रेमचंद की जयंती और रफ़ी की पुण्यतिथि पर एक रचना भेजी प्रेमचंद और रफी ......इसके बाद अगस्त की पहली पोस्ट थी हरकिशन सिंह सुरजीत के अवसान से जुड़ी जिसमें मेरा व्यक्तिगत संस्मरण भी जुड़ा था युगांत ...... । इसके बाद आई ११ अगस्त और लाई ओलम्पिक में अभिनव बिंद्रा के स्वर्ण पदक जीतने की ख़बर....ताज़ा हवा ने कहा बिंद्रा.....सलाम ! इस पर शोभा महेन्द्रू ने कहा,
"आप आशावादी रहें। भारत और भी पदक जीतेगा। जीत की बहुत- बहुत बधाई"
भविष्यवाणी सच निकली !!
१५ अगस्त आई और हमने कहा हुआ जनतंत्र का जन्म ! उड़नतश्तरी सरसराई, "स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं।" इसके बाद जन्माष्टमी पर याद दिलाई कृष्ण भक्त रसखान। ... की, इसके बाद आखिरी कलाम.....सलाम में ताज़ा हवा ने दी अहमद फ़राज़ साहब को श्रद्धांजलि। १ सितम्बर को दुष्यंत के जन्मदिन पर उन्हें याद किया हिमांशु ने और समझाए दुष्यंत के मायने .... और क्रांतिकारी कवि वेणुगोपाल के अवसान पर किया उनको याद...क्रन्तिकारी का अवसान .... शिक्षक दिवस पर गुरुजनों को याद किया राधाकृष्णन, कबीर, तुम्हारे या फिर अपने बहाने ...? इसके बाद उठाई हमने आवाज़ .....
समीरलाल जी ने कही "सच में सबकी बात है। बहुत उम्दा रचना!!!"
Shastri बोले, "हम तो जोर से चिल्लायेंगे !!"
और हिंदी दिवस पर प्रसून जोशी से साभार कहलवाया हिंदी को आजादी चाहिए !
इसके बाद दिल्ली में धमाके हो गए और फिर आए मकडियां , बीच की दीवार और आतंक का फिर हमला ......२८ और 29 सितम्बर को हमने याद किया भगत सिंह को उनकी माँ की अपील .... और उनकी चिट्ठियों के ज़रिए ! अदम गोंडवी की ग़ज़ल पर डॉ .अनुराग ने कहा,
"ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
बस एक शेर में सारी बात कह दी..."
हालांकि कई बातें कहनी बाकी थी सो आगाज़ हुआ एक नए ब्लागर का और उन्होने कहा इक शमा और जला लूँ ......इसके बाद नन्ही पुजारन से परिचय हुआ और समझा बाढ़ और अकाल को तभी आया करवाचौथ और हमने कहा आज फिर ..... इस पर दिनेशराय द्विवेदी जी ने पूछा,
"कविता सुंदर है। लेकिन क्या आप इस परंम्परा को अपनी बेटी तक चलाने का इरादा रखते हैं।"
इसके बाद हमने बात कही जो राही मासूम ने कही थी लेकिन मेरा लावारिस दिल ,इस पर Suresh Chandra Gupta जी ने फ़रमाया,
मन्दिर बनाया आपने,
मस्जिद बनाई आपने,
दिल बनाया जिस ने,
निकाल दिया उसे दिल से,
फ़िर दिल लावारिस तो होना ही था।
उसके बाद चुनाव आए और बाल दिवस भी....चुनावी ग़ज़ल भी आई और वरुण कुमार सखाजी की टिप्पणी भी कि,
अच्छा लिखते हो ग़ज़ल-ए-बयां पसंद आया पहली बार इस ब्लॉग पर आया हूँ। वधाई हो इस हक़ीक़त को जानते तो सभी हैं,मग़र कौन बनेगा दर्द की दवा,ज़ख़्म का मलहम। तेजस्वी ओजस्वी लोग मीडिया की शरण में हैं जो उद्योगपतियों की कठपुतली हैं आखिर क्यों ये तथाकथित क्रांतीवीर राजनीति नहीं ज्वाइन करते। मयंक जी से उम्मीदें बहुत हैं।
ज्ञानपीठ मिलने के बाद भाषा की ध्वस्त पारिस्थितिकी में अडिग कुंवर नारायण को भी याद किया और महिला दिवस पर जनानो की मर्दानगी को भी......यह सब चलता रहता पर तभी मुम्बई ने पूरी दुनिया को हिला दिया.....हम क्या अलग थे ? बहुत कोशिश की कहने की जाने दो ! पर दिल उबल पड़ा कि क्या वाकई हम इसी मीडिया के हिस्से हैं ..... निकल पड़ी कुछ नज्में...दिल की बातें हैं..... और मानवाधिकार दिवस पर याद किया कि क्या ज़रूरी हैं .........................
और देखते ही देखते यह शिशु एक वर्ष का हो गया......यकीन तो वाकई नहीं होता पर सच है......अब तक वही कहा और लिखा जो ठीक लगा
न भाषा भाव शैली है, न कविता सारगर्भित है
ह्रदय का भाव सुमन है, ह्रदय से ही समर्पित है
पर अब शिशु और उसका पिता आप सभी परिवारजनों को धन्यवाद देना चाहता है, हम दिल से आभारी हैं,
समीरलाल जी, कविता जी, शोभा जी, रवीश जी, यती, सुरेश जी, अनुपम जी, शास्त्री जी, महेन्द्र जी, संजय जी, अशोक जी, राकेश जी, रश्मि जी, नीरज जी, सुशील जी, हरि जी, संगीता जी, दिनेश राय द्विवेदी जी, निशू जी, योगेन्द्र जी, रंजना जी, तनु जी जिन सबने ताज़ा हवा के अभिभावकों की बख़ूबी भूमिका वहन की......इसके बाद शुक्रगुज़ार हूं अपने साथियों देविका, अजीत, नितिन, स्वप्रेम, वरुण, अनुभव जी, गुंजन, रोहिणी, मनीष और उन सभी का जो हम को पढ़ते हैं ....... या आगे पढ़ेंगे ....
अब कहो कि सालगिरह भूल गए तो यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं, अब हम लोग जब अपने शहीदों की जन्म तिथियाँ और पुण्य तिथियाँ भूल जाते हैं, हम सड़क पर पड़े घायल को भूल जाते हैं, हम कचरे में खाना ढूंढते बच्चों को भूल जाते हैं, हम रोज़ होने वाले आतंकी हमलों को भूल जाते हैं, हम अपने समाज और मुल्क के हित भूल जाते हैं, और तो और अक्सर हम अब इंसानियत भूल जाते हैं......फिर मैं तो अपने अदने से ब्लॉग की सालगिरह ही भूला था.....सो इस भूल को आप भूल जाओ और अब आगे ताज़ा हवा पर आने वाले और नियमित और बेहतर लेखों का मज़ा लें .....!
इस प्रण के साथ कि आगे से हम और नियमित और धुँआधार पोस्ट्स आपके लिए लायेंगे ......अभी के लिए विदा
अच्छी तरह से याद दिलाई आपने
जवाब देंहटाएंएक एक का नाम ले के
मयखाने में कई को आपने खींचा है
एक एक और जाम दे के