मैंने गांधी को मारा है !!

गांधीजी की पुण्यतिथि पर उनको शायद हम सबने याद किया, कुछ को याद था कुछ को याद दिला दिया गया। अच्छा लगा कि कम से कम हमारी ज़िम्मेदार ( तथाकथित ) मीडिया इस दिन को नही भूली। वैसे कई चैनल दूरदर्शन देख कर जगे होंगे, दूरदर्शन को बधाई किसी काम तो आया ....... कुछ निजी चैनल भी तैयारी के साथ आये जैसे एन डी टी वी और समय को बधाई ! कल एन डी टी वी देखते पर कुछ विचार फिर से उठे और शब्दों की शक्ल अख्तियार कर ली ! गांधी की प्रासंगिकता पर सवाल और जवाब की ही उलझन में पड़े हम सब हिन्दोस्तानी शायद यही सोचते हैं !

मैंने गांधी को मारा है !!
मैंने गांधी को मारा है .....
हां मैंने गांधी को मार दिया !!

मैं कौन ?
अरे नही मैं कोई नाथूराम नहीं
मैं तो वाही हूँ जो तुम सब हो
हम सब हैं

क्या हुआ अगर मैं उस वक़्त पैदा
नही हो पाया
क्या हुआ अगर गांधी को मैं सशरीर नही मार सका
मैंने वह कर दिखाया
जो नाथू राम नही कर पाया

मैंने गांधी को मारा है
मैंने उसकी आत्मा को मार दिखाया है
और मेरी उपलब्धि
कि मैंने गांधी को एक बार नही
कई बार मारा है
अक्सर मारता रहता हूँ

आज सुबह ही मारा है
शाम तक न जाने कितनी बार मार चुका हूँगा
इसमे मेरे लिए कुछ नया नहीं
रोज़ ही का काम है

हर बार जब अन्याय करता हूँ
अन्याय सहता हूँ
सच छुपाता झूठ बोलता हूँ
घुटता अन्दर ही अन्दर मरता हूँ

अपने फायदे के लिए दूसरे का नुकसान
करता हूँ
और उसे प्रोफेश्नालिस्म का नाम देकर
बच निकलता हूँ
तब तब हर बार
हाँ मैंने गांधी को मारा है ........

जब जब यह चीखता हूँ कि
साला यह मुल्क है ही घटिया
तब तब ......
जब भी भौंकता हूँ कि
साला इस देश का कुछ होने वाला नही
और जब भी
व्यंग्य करता हूँ कि
अमा यार
' मजबूरी का नाम .........'
तब तब हर बार मैंने
उसे मार दिया
बूढा परेशान न करे हर कदम पर
आदर्शो के नखरों से
सो उसे मौत के घाट उतार दिया

तो आज गीता कुरान जिस पर कहो
हाथ रख कर क़सम खाता हूँ
सच बताता हूँ
कि मैंने गांधी को मारा है

पर इस साजिश में मैं अकेला नहीं हूँ
मेरे और भी साथी हैं
जो इसमे शामिल हैं
और
वो साथी हैं
आप सब !!
बल्कि हम सब !!!!
यौर होनौर आप भी ......
अब चौंकिए मत
शर्मिन्दा हो कर चुप भी मत रहिये .......
फैसला सुनाइये

मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है !!!!!!!

हाँ दो मुझे सज़ा दो क्यूंकि मैंने गांधी को ....................


- मयंक सक्सेना
mailmayanksaxena@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. badhiya laga. aapki kavita bahut hi prasangik hai. sachmuch ham gandgi ji ke aadarshon ko bhool gaye hain. ab to aisa lagta hai ki kayee jagah tthakathit samaj sudharak aur buddhijeevi gandhi ji ke naam ka upyog bas dimagi tafreeh ke liye karte hain. matalab kuch to unka kaam dikhna hi chahiye. vaise bhi aazadi ke baad hum kabhi bhi gandhiji ko seriously accept nahi kar sake. shayad unke aadarh unki janmtithi aur poonyatithi se do-char din pahle aur do-char din baad ke liye hi hain.

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  2. ise kavita k baremai likh ne k liye shabda nai hai bas itna hi kahungi aachi hai

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