युगावतार गांधी
महात्मा गाँधी पर यह कविता कई साल पहले प्रसिद्ध कवि सोहनलाल द्विवेदी ने लिखी थी। द्विवेदी बच्चो के लिए लिखने वाले कुछ प्रमुख कवियों में से एक थे। यह कविता मैंने अपनी स्कूल बुक में कक्षा ७ या ८ में पढी थी। प्रस्तुत है अंश ............ याद करें राष्ट्रपिता को !
चल पड़े जिधर दो डग, मग में,
चल पड़े कोटि पग उसी ओर
चल पड़े कोटि पग उसी ओर
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि,
पड़ गये कोटि दृग उसी ओर;
जिसके सिर पर निज धरा हाथ, उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया, झुक गये उसी पर कोटि माथ।
हे कोटिचरण, हे कोटिबाहु!
हे कोटिरूप, हे कोटिनाम!
तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि!
हे कोटिरूप, हे कोटिनाम!
तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि!
हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम!
युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख, युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख;
तुम अचल मेखला बन भू की, खींचते काल पर अमिट रेख।
तुम बोल उठे, युग बोल उठा,
तुम मौन बने, युग मौन बना
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर,
युग कर्म जगा, युगधर्म तना।
युग-परिवर्त्तक, युग-संस्थापक, युग संचालक, हे युगाधार!
युग-निर्माता, युग-मूर्ति! तुम्हें, युग-युग तक युग का नमस्कार!
- सोहनलाल द्विवेदी
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