गाँधी की टी आर पी

आज गांधी जी की पुण्यतिथि थी ....अब आप कहेंगे की हम जानते हैं ....तो कैसे मान लें की आप जानते थे ? आपने ना तो उस पर ब्लॉग लिखा...न ही टिप्पणी की और ना ही कुछ और ...फिर क्या सबूत है की आप जानते थे ? अच्छा अच्छा आप जानते थे पर आप भूल गए थे। बहुत बढ़िया फिर मुंबई हमले के बाद से अभी तक नेताओं को क्यों गरिया रहे हो ? कोई हक है क्या ?
खैर आपसे बहस नहीं करनी है और यह बहस का मुद्दा होना भी नहीं चाहिए क्यूंकि जिस भी मुद्दे पर हमारे देश में एक बार बहस शुरू हो जाती है वो फिर बहस में ही जिंदा रह जाता है बाकी ख़त्म हो जाता है। हाँ तो बात कर रहा था मैं बापू की पुण्य तिथि की, आज सुबह से प्रतीक्षा में था की वो मीडिया जिसका मैं हिस्सा हूँ और जो आज का सबसे बड़ा बहस का मुद्दा है; क्या करता है आज के दिन। सुबह अखबार उठाया तो हिन्दुस्तान जो देश का अलमबरदार बनने के दम भरता है उसके पहले पन्ने पर गांधी की एक तस्वीर तक के दर्शन नहीं हुए.....पहला झटका ......बापू का स्कोर ....शून्य पर एक .....दिल निराशा से भर गया, दूसरे पन्ने पर एक सरकारी विज्ञापन था सो मतलब की बापू अगर बिकते हैं तो हैं नहीं तो नहीं......
खैर जैसे तैसे हिम्मत कर के रिमोट उठाया, दूरदर्शन नहीं लगाया .....मालूम था की वो याद रखेगा। सारे चैनल पलट डाले पर कहीं भी कुछ नहीं। इस समय रात हो चली है और अभी तक किसी भी टीवी चैनल ने बापू को याद करने की ज़हमत नहीं उठाई है। हमारे चैनल ने भी नहीं जो कहता है ज़रा सोचिये हाँ रात दस बजे के कार्यक्रम की शुरुआत को प्रभावी करने के लिए उनको ज़रूर शामिल किया गया । कल ही इंडिया टीवी टी आर पी में सबसे ऊपर पहुँचा है और उनके एक शीर्ष पुरूष जो अब शिखर पुरूष होने के भ्रम में हैं, उन्होंने कहा की यह खबरों की जीत है।
अब मैं भ्रम में हूँ की क्या वाकई गांधी ख़बर नहीं रहे.....या ख़बर अब ख़बर नहीं रही.....क्या पंकज श्रीवास्तव जी मेरी आवाज़ सुन रहे हैं....उन्होंने अभी एक लेख लिखा है, और संजीव पालीवाल जी जिन्होंने अभी इलेक्ट्रोनिक मीडिया की ज़िम्मेदारी के ढोल पीटे थे ब्लोगिया बहस में .....शायद मैं यह ब्लॉग इसलिए लिख रहा हूँ की मैं चैनल में बहुत छोटे पद पर हूँ और नीति निर्माता नहीं हूँ पर गांधी तो राष्ट्र निर्माता थे उनको भुला दिया......भूल गए कह देने से क्या काम चलेगा ....क्या हम अपनी जिम्मेदारियों को याद रखने का ढोंग करके ख़ुद ही को तो नहीं धोखा देते हैं.....क्या पत्रकारिता केवल बिकाऊ ख़बर है ? फिर ये समाज सेवा का ढोंग क्यूँ ?
यही सवाल अखबार वालों से भी है की क्या अगर आज विज्ञापन नहीं मिलते तो अखबार में गांधी भी नहीं दीखते .........? मैं परेशान हूँ, दुखी भी और कुंठित भी.....मौका मिला तो इसे बदलना चाहूँगा पर क्या मेरे जैसे कथित आदर्शवादी को कोई मौका देगा ?
* आज विभिन्न चैनलों द्बारा प्रसारित कार्यक्रम.....
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अब आप समझ गए होंगे की क्या है गाँधी की टी आर पी
उत्तर की प्रतीक्षा में

(कुछ चैनलों ने गाँधी जी को औपचारिकता निभाने के लिए याद ज़रूर किया पर वह औपचारिकता ही रही १० सेकेण्ड के आस पास.......क्या चाँद मोहम्मद अगर दिन भर के स्लोट के अधिकारी थे तो राष्ट्रपिता आधे घंटे के भी नहीं ?)

टिप्पणियाँ

  1. कुछ कार्यक्रम ऐसे होते हैं जिनकी टी आर पी नहीं होती पर मन में बसते हैं ..भले ही आज बापू की टी आर पी नहीं दिखाई दे रही पर ह्रदय में ज़रूर होगी .. बापू को आज के दिन विनम्र श्रद्धांजलि

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