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हामी..मुस्कुराहट...धूप...मेरा आसमान और तुम...
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इतनी सस्ती थी कि विद नमकीन 'चार आने' की पी...
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काल तुझसे होड़ है मेरी...(आलोक तोमर की अंतिम कविता)
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