आज बिरज में होली रे रसिया.....

वैसे तो मैं थोडा सुस्त हूँ पर मुआफी चाहूंगा इस बार होली पर घर चला गया था इसलिए पिछले तीन चार दिन से कुछ नहीं लिखा....मैं बड़े दावे से कहता हूँ की लिखना मेरे लिए जल भोजन और श्वास है पर घर मोक्ष है और इसलिए फिर घर गया तो होली के रंग में ऐसा डूबा की लेखन भूल गया। फिलहाल आज लौट आया हूँ और याद कर रहा हूँ कल लखनऊ में खेली गई होली। विस्तृत पोस्ट तो बाद में पर परसों रात पूजा के बाद ढोलक उठा कर जो पहला गीत मैंने गाया था....उसे सुनवा देता हूँ, अरे नहीं अपनी नहीं शोभा गुर्टू की मधुर आवाज़ में ......ये एक लोकगीत है जो सदियों से ब्रिज और जहाँ जहाँ भी होली के त्यौहार और संगीत के रसिक हैं, गाया जा रहा है और सुना जा रहा है.....
इसीलिए परसों रात मैंने भी ढोलक उठाई और शुरू हो गया....आज बिरज में होली रे रसिया ....

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गीत गाकर देखिये, फिर जहाँ मन में प्रेम और बोली में रस हो वहीं ब्रिज है !
आज बिरज में होली रे रसिया
होरी है रे रसिया, बरजोरी है रे रसिया

आज बिरज में ...

इत तन श्याम सखा संग निकसे
उत वृषभान दुलारी है रे रसिया

आज बिरज में ...

उड़त गुलाल लाल भये बादर
केसर की पिचकारी है रे रसिया

आज बिरज में ...

बाजत बीन, मृदंग, झांझ, डफली
गावत दे -दे - तारी रे रसिया

आज बिरज में ...

श्यामा श्याम मिल होली खेलें,
तन मन धन बलिहारी रे रसिया,
आज बिरज में होली रे रसिया !
होली की शुभकामनायें

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